Question -
Answer -
भूकम्पीय तरंगों के संचरण का चट्टानों पर प्रभाव
भूकम्प अवधि से भूकम्पलेखी पर बने आरेख (चित्र 3.1) से भूकम्प तरंगों की दिशा एवं भिन्नता का अनुमान लगाया जाता है। इन भिन्न-भिन्न प्रकार की तरंगों और इनके संरचित होने की विभिन्न प्रणाली का चट्टानों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है जो इस प्रकार है
जैसे ही भूकम्पीय तरंगें चट्टानों में संचरण करती हैं तो इनमें कम्पन उत्पन्न होता है।
प्राथमिक (P) तरंगों से शैलों में कम्पन की दिशा तरंगों की दिशा के समानान्तर ही होती है। यह तरंगें संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती हैं। इस दबाव के परिणामस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है।
अन्य तीन प्रकार की तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कम्पन पैदा करती हैं।
द्वितीयक (S) तरंगें ऊध्र्वाधर तल में तरंगों की दिशा में समकोण पर कम्पन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुजरती हैं। उसमें उभार व गर्त उत्पन्न हो जाता है। धरातलीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं इनसे चट्टानें विस्थापित होती हैं और इमारतें गिर जाती हैं।