Question -
Answer -
चूना-चट्टान वाले प्रदेशों में आई व शुष्क जलवायु के कारण भू-आकृतिक प्रक्रिया भिन्न होती है। चूना-चट्टान वाले आर्द्र जलवायु प्रदेशों में चट्टानों पर जल सरलता से स्रवण कर क्षैतिज रूप में प्रवाहित होने लगता है और रासायनिक घोलीकरण क्रिया से अपरदन कार्य प्रारम्भ हो जाता है। क्योंकि चूने के पत्थर में कैल्सियम कार्बोनेट प्रमुख अवयव होता है जो आर्द्र जलवायु में जल की उपलब्धता के कारण आसानी से घुल जाता है। जबकि शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में जल अल्पता के कारण चूने की चट्टानों के अवयव आसानी से नहीं घुल पाते हैं। अत: चूना-चट्टानें आर्द्र व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं। इसका मुख्य कारण चट्टानों का रासायनिक संघटन और जलवायु की भिन्नता है।।
चूना प्रदेशों में मुख्य भू-आकृतिक प्रक्रिया घोलीकरण के द्वारा चट्टानों को अपरदन और निक्षेपण है। इन क्षेत्रों में भूमिगत जल द्वारा चट्टानों के अवयव घोलीकरण से अन्यत्र स्थानों पर जमा होते रहते हैं जिससे कार्ट टोपोग्राफी का विकास होता है। इसके परिणामस्वरूप आकाशीय एवं पातालीय स्तम्भ स्थलरूपों का निर्माण होता है जबकि अपरदन के कारण सिन्कहोल डोलाइन, युवाला एवं कन्दराएँ आदि स्थलरूप निर्मित होते हैं