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Question -

भारतीय संविधान की एक सीमा यह है कि इसमें लैगिक-न्याय पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। आप इस आरोप की पुष्टि में कौन-से प्रमाण देंगे? यदि आज आप संविधान लिख रहे होते, तो इस कमी को दूर करने के लिए उपाय के रूप में किन प्रावधानों की सिफारिश करते?



Answer -

भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से लैंगिक-न्याय का कोई उल्लेख नहीं है, इसी कारण समाज में अनेक रूपों में लैंगिक-अन्याय दिखाई देता है। यद्यपि संविधान के मौलिक अधिकार के भाग में अनुच्छेद 14, 15 व 16 में उल्लेख है कि लिंग के आधार पर कानून के समक्ष, सार्वजनिक स्थान पर व रोजगार के क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा। राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों के अध्याय में महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक न्यायोचित विकास की व्यवस्था की गई है। समान कार्य के लिए समान वेतन की भी व्यवस्था है।

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