Question -
Answer -
नहीं, हम इस बात से सहमत नहीं हैं। न्यापालिका को संशोधन की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए। हमारे यहाँ सर्वोच्च न्यायालय संविधान की सर्वोच्चता एवं पवित्रता की सुरक्षा करता है; अत: संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के संरक्षण का कार्य भी प्रदान किया गया है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय को संसद अथवा राज्य विधानमण्डलों द्वारा निर्मित कानून की वैधानिकता की जाँच कराने का अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 131 और 132 सर्वोच्च न्यायालय को संघीय तथा राज्य सरकारों द्वारा निर्मित विधियों के पुनरावलोकन का अधिकार प्रदान करते हैं; अतः यदि संसद अथवा राज्य विधानमण्डल, संविधान का अतिक्रमण करते हैं या संविधान के विरुद्ध विधि का निर्माण करते हैं, तो संसद या राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि को सर्वोच्च न्यायालय अवैधानिक घोषित कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय की इस शक्ति को ‘न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति (Power of Judicial Review) कहा जाता है। इसी प्रकार, वह संघ सरकार अथवा राज्य सरकार के संविधान का अतिक्रमण करने वाले समस्त कार्यपालिका आदेशों को भी अवैध घोषित कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करने वाला (Interpreter) अन्तिम न्यायालय है। उसे यह घोषित करना पड़ता है कि किसी विशेष अनुच्छेद का क्या अर्थ है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय की भाँति कानून की उचित प्रक्रिया (Due Process of the Law) के आधार पर न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति का प्रयोग न कर कानून के द्वारा स्थापितं प्रक्रिया (Procedure Established by the Law) के आधार पर करता है। इस दृष्टि से भारत का सर्वोच्च न्यायालय केवल संवैधानिक आधारों पर ही संसद अथवा विधानमण्डल के द्वारा पारित कानूनों को अवैध घोषित कर सकता है। इस दृष्टिकोण से भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से कमजोर है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति के आधार पर संसद का तीसरा सदन नहीं कहा जा सकता है।