Question -
Answer -
आरिफ का मानना सही है कि संसदीय प्रणाली में अधिकांश बिल सरकारी बिल होते हैं, जिन्हें मंत्री ही तैयार करते हैं व मंत्री ही उसे प्रस्तुत करते हैं। इस स्थिति में व्यावहारिक रूप से यह स्थिति दिखाई देती है कि संसद तो केवल उस बिल पर स्टैम्प लगाने वाली संस्था बन गई है जिन्हें मंत्री प्रस्तुत करते हैं। आरिफ के इस विचार में कुछ सच्चाई अवश्य है परन्तु इसका एक पक्ष यह भी है कि सरकार बनने के बाद सदन कार्यपालिका व विधायिका में बँट जाता है।
विधायिका के सदस्यों का यह दायित्व होता है कि वे सदन में जनहित का दृष्टिगत रखकर सरकार के निर्णयों का समर्थन करें अथवा विरोध करें, भले ही वे किसी भी दल के हों। कार्यपालिका पूरे सदन के लिए जिम्मेदार होती है। सत्ता दल के सदस्य या विरोधी दल के सदस्य सभी विधानपालिका के सदस्य होते हैं। कार्यपालिका में मंत्री व प्रधानमंत्री सम्मिलित होते हैं; अत: संसद केवल एक रबड़ स्टैम्प ही नहीं है। शासक दल के सदस्य सरकार की प्रत्येक सही व गलत बात का समर्थन करेंगे ऐसा नहीं है, क्योंकि उनकी भी संसद सदस्यों के रूप में अपनी विशिष्ट भूमिका है।