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Question -

प्रतिधारा क्रियाविधि का संक्षेप में वर्णन कीजिए।



Answer -

प्रतिधारा क्रियाविधि

शरीर में जैल की कमी हो जाने पर वृक्क सान्द्र मूत्र उत्सर्जित करने लगते हैं। इसमें जल की मात्रा बहुत कम और उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। ऐसा मूत्र रक्त की तुलना में4-5 गुना अधिक गाढ़ा हो सकता है। इसकी परासरणीयता1200 से1400 मिली ऑस्मोल/लीटर हो सकती है। मूत्र के सान्द्रण की प्रक्रिया में जक्स्टा मेड्यूलरी(juxta medullary) वृक्क नलिकाओं की विशेष भूमिका हो जाती है; क्योंकि हेनले के लूप तथा परिजालिका केशिकाओं (वासा रेक्टा-vasarecta) के लूप पेल्विस तक फैले होते हैं। यह प्रक्रियाADH के नियन्त्रण में तथा पिरैमिड्स के ऊतक द्रव्य में वल्कुट भाग से पेल्विस तक क्रमिक उच्च परासरणीयता बनाए रखने पर निर्भर करती है। वृक्कों के वल्कुट भाग में ऊतक तरल की परासरणीयता300 मिली ऑस्मोल/लीटर जल होती है। मध्यांश(medulla) भाग के पिरेमिड्स में यह परासरणीयता क्रमशः बढ़कर पेल्विस तक1200 से1400 मिली ऑस्मोल/लीटर जल हो जाती है। ऊतक तरल की परासरणीयता मुख्यतः Na+  Cl आयन तथा यूरिया पर निर्भर करती है।
Na+ , Clआयन्स का परिवहन हेनले लूप की आरोही भुजा द्वारा होता है जिसका हेनले लुप की अवरोही भुजा के साथ विनिमय किया जाता है। सोडियम क्लोराइड ऊतक द्रव्य को वासा रेक्टा की आरोही भुजा द्वारा लौटा दिया जाता है। इसी प्रकार यूरिया की कुछ मात्रा हेनले लूप के सँकरे आरोही भाग में विसरण द्वारा पहुँचती है जो संग्रह नलिका द्वारा ऊतक द्रव्य को पुनः लौटा दी जाती है। हेनले लूप तथा वासो रेक्टा द्वारा इन पदार्थों के परिवहन को प्रतिधारा क्रियाविधि द्वारा सुगम बनाया जाता है। इसके फलस्वरूप मध्यांश के ऊतक द्रव्य की प्रवणता बनी रहती है। यह प्रवणता संग्रहनलिका द्वारा जल के अवशोषण में सहायता करती है और नियंद का सान्द्रण करती है। प्रतिधारा क्रियाविधि जल के ह्रास को रोकने की प्रमुख विधि है।

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