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Question -

चित्रों की सहायता से काष्ठीय एन्जियोस्पर्म के तने में द्वितीयक वृद्धि के प्रक्रम का वर्णन कीजिए इसकी क्या सार्थकता है?



Answer -

द्वितीयक वृद्धि
शीर्षस्थ विभज्योतक की कोशिकाओं के विभाजन, विभेदन और परिवर्द्धन के फलस्वरूप प्राथमिक ऊतकों का निर्माण होता है। अत: शीर्षस्थ विभज्योतक के कारण पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है। इसे प्राथमिक वृद्धि कहते हैं। द्विबीजपत्री तथा जिम्नोस्पर्स आदि काष्ठीय पौधों में पार्श्व विभज्योतक के कारण तने तथा जड़ की मोटाई में वृद्धि होती है। इस प्रकार मोटाई में होने वाली वृद्धि को द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) कहते हैं। जाइलम और फ्लोएम के मध्य विभज्योतक को संवहन एधा (vascular cambium) तथा वल्कुट या परिरम्भ  में विभज्योतक को कॉर्क एधा (cork cambium) कहते हैं।
द्वितीयक वृद्धि-द्विबीजपत्री तना
द्वितीयक वृद्धि संवहन एधा (vascular cambium) तथा कॉर्क एधा (cork cambium) की क्रियाशीलता के कारण होती है।
संवहन एधा की क्रियाशीलता 
द्विबीजपत्री तने में संवहन बण्डल वर्षी (open) होते हैं।  संवहन बण्डलों के जाईलम तथा फ्लोएम के मध्य अन्तःपूलीय एधा (intrafascicular cambium) होती है। मज्जा रश्मियों की मृदूतकीय कोशिकाएँ जो अन्त:पूलीय एधा के मध्य स्थित होती हैं, विभज्योतकी होकर आन्तरपूलीय एधा (interfascicular cambium) बनाती हैं। पूलीय तथा आन्तरपूलीय एधा मिलकर संवहन एधा का घेरा बनाती हैं।
संवहन एधा वलय (vascular cambium ring)
की कोशिकाएँ तने की परिधि के समानान्तर तल अर्थात् स्पर्शरेखीय तल (tangential plane) में ही विभाजित होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक कोशिका के विभाजन से जो नई कोशिकाएँ बनती हैं उनमें से केवल एक जाइलम या फ्लोएम की कोशिका में रूपान्तरित हो जाती है, जबकि दूसरी कोशिका विभाजनशील (meristematic) बनी रहती है। परिधि की ओर बनने वाली कोशिकाएँ फ्लोएम के तत्त्वों में तथा केन्द्र की ओर बनने वाली कोशिकाएँ जाइलम के तत्त्वों में परिवद्धित हो जाती हैं। बाद में बनने वाला संवहन ऊतक क्रमशः द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) तथा द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem) कहलाता है। ये संरचना तथा कार्य में प्राथमिक जाइलम तथा फ्लोएम के समान होते हैं।
कॉर्क एधा की क्रियाशीलता
संवहन एधा की क्रियाशीलता से बने द्वितीयक ऊतक पुराने ऊतकों पर दबाव डालते हैं जिसके कारण भीतरी (केन्द्र की ओर उपस्थित) प्राथमिक जाइलम अन्दर की ओर दब जाता है। इसके साथ ही परिधि की ओर स्थित प्राथमिक फ्लोएम नष्ट हो जाता है। इससे पहले कि बाह्य त्वचा (epidermis) की कोशिकाएँ एक निश्चित सीमा तक खिंचने के बाद टूट-फूट जाएँ, अधस्त्वचा (hypodermis) के अन्दर की कुछ मृदूतकीय कोशिकाएँ विभज्योतक (meristem) होकर कॉर्क एधा (cork cambium) बनाती हैं। कॉर्क एधा कभी-कभी वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ (pericycle) आदि से बनती है। कॉर्क एधा तने की परिधि के समानान्तर विभाजित होकर बाहर की ओर सुबेरिनयुक्त (suberized) कॉर्क या फेलम (cork or phellem) का निर्माण करती है। यह तने के अन्दर के भीतरी ऊतकों की सुरक्षा करती है। कॉर्क एधा से केन्द्र की ओर बनने वाली मृदूतकीय (parenchymatous), स्थूलकोणीय अथवा दृढ़ोतकी कोशिकाएँ द्वितीयक वल्कुट (phelloderm) का निर्माण करती हैं। कॉर्क एधा से बने फेलम तथा फेलोडर्म को पेरीडर्म (periderm) कहते हैं। पेरीडर्म में स्थान-स्थान पर गैस विनिमय के लिए वातरन्ध्र (lenticels) बन जाते हैं। द्वितीयक जाइलम वसन्त काष्ठ तथा शरद् काष्ठ में भिन्नत होता है। इसके फलस्वरूप कुछ पौधों में स्पष्ट वार्षिक वलय बनते हैं।

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