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Chapter 9 जैव अणु (Biomolecules) Solutions

Question - 11 : - ऐलेनीन ऐमीनो अम्ल की संरचना बताइए।

Answer - 11 : - ऐलेनीन में R समूह अत्यधिक जलरोधी हाइड्रोकार्बन समूह होते हैं जिन्हें पार्श्व श्रृंखलाएँ कहते हैं। इसमें पाश्र्व श्रृंखला मेथिल समूह की होती है।

Question - 12 : - गोंद किससे बने होते हैं? क्या फेविकोल इससे भिन्न है?

Answer - 12 : -

गोंद (Gum) :
यह एक द्वितीयक उपापचयज (secondary metabolite) है। यह एक कार्बोहाइड्रेट बहुलक (polymer) है। गोंद पौधों की काष्ठ वाहिकाओं (xylem vessels) से प्राप्त होने वाला उत्पाद है। यह कार्बनिक घोलक में अघुलनशील होता है। गोंद जल के साथ चिपचिपा घोल (sticky solution) बनाता है। फेविकोल (fevicol) एक कृत्रिम औद्योगिक उत्पाद है।

Question - 13 : - प्रोटीन, वसा व तेल, ऐमीनो अम्लों का विश्लेषणात्मक परीक्षण बताइए एवं किसी भी फल के रस, लार, पसीना तथा मूत्र में इनका परीक्षण कीजिए?

Answer - 13 : -

प्रोटीन एवं ऐमीनो अम्ल का परीक्षण प्रोटीन के वृहत् अणु (macromolecules) ऐमीनो अम्लों की लम्बी श्रृंखलाएँ होते हैं। ऐमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़े रहते हैं। इनका आण्विक भार बहुत अधिक होता है। अण्डे की सफेदी, सोयाबीन, दालों (मटरे, राजमा आदि) में प्रोटीन (ऐमीनो अम्ल) प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं। अण्डे की सफेदी या दालों (सेम, चना, मटरे, राजमा) आदि को जल के साथ पीसकर पतली लुगदी बना लेते हैं। इसे जल के साथ उबाल कर छान लेते हैं। निस्वंद द्रव में प्रोटीन (ऐमीनो अम्ल) होती है।
प्रयोग 1 :
एक परखनली में 3 मिली प्रोटीन नियंद लेकर, इसमें 1 मिली सान्द्र नाइट्रिक अम्ल (HNO3) मिलाइए। सफेद अवक्षेप बनता है। परखनली को गर्म करने पर अवक्षेप घुल जाता है तथा विलयन का रंग पीला हो जाता है। अब इसे ठण्डा करके इसमें 10% सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) विलयन मिलाते हैं। परखनली में विलयन का रंग पीले से नारंगी हो जाता है।
प्रयोग 2 :
एक परखनली में प्रोटीन नियंद की 1 मिली मात्रा लेकर इसमें लगभग 1 मिली मिलन अभिकर्मक (Millon’s Reagent) मिलाने पर हल्के पीले रंग का अवक्षेप बनता है। इस अवक्षेप में 4-5 बूंदें सोडियम नाइट्रेट (NaNO3,) की मिलाकर विलयन को गर्म करने पर अवक्षेप का रंग लाल हो जाता है।
वसा व तेल का परीक्षण
ये जल में अविलेय और ईथर, पेट्रोल, क्लोरोफॉर्म आदि में घुलनशील (विलेय) होती हैं। साधारण ताप पर जब वसाएँ ठोस होती हैं तो वसा (चर्बी-fat) और जब ये तरल होती हैं तो तेल (oil) कहलाती हैं। पादप वसाएँ असंतृप्त (नारियल का तेल तथा ताड़ का तेल संतृप्त) तथा जन्तु वसाएँ संतृप्त होती हैं।
प्रयोग 1 :
मूंगफली के कच्चे दाने लेकर उनको सफेद कागज पर रखकर पीस लीजिए। अब इस कागज के टुकड़े को प्रकाश के किसी स्रोत की ओर रखकर देखिए। यह अल्पपारदर्शी नजर आता है। इस पर एक बूंद पानी डालकर देखिए। कागज पर पानी का प्रभाव नहीं होता। यह प्रयोग जन्तु वसा (देशी घी) के साथ भी किया जा सकता है।
प्रयोग 2 :
एक परखनली में 0:5 मिली परीक्षण तेल या वसा तथा 0:5 मिली जल (दोनों बराबर मात्रा में) लेते हैं। अब इसमें 2-3 बूंदें सुडान-III विलयन की डालकर हिलाते हैं तथा पाँच मिनट तक ऐसे ही रख देते हैं। परखनली में जल तथा तेल की पृथक् पर्यों में, तेल की पर्त लाल नजर आती है। (नोट-फल के रस, लार, पसीना तथा मूत्र में इनका परीक्षण उपर्युक्त विधियों द्वारा किया जा सकता है।)

Question - 14 : - पता लगाइए कि जैवमण्डल में सभी पादपों द्वारा कितने सेलुलोस का निर्माण होता है? इसकी तुलना मनुष्यों द्वारा उत्पादित कागज से कीजिए। मानव द्वारा प्रतिवर्ष पादप पदार्थों की कितनी खपत की जाती है? इसमें वनस्पतियों की कितनी हानि होती है?

Answer - 14 : - सेलुसोस (cellulose) पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में पाए जाने वाला कार्बोहाइड्रेट है। यह जटिल बहुलक होता है। पादपों में सेलुलोस की मात्रा सर्वाधिक होती है। यह पादप कोशिकाओं की कोशिका भित्ति को यान्त्रिक दृढ़ता प्रदान करता है। पौधों के काष्ठीय भागों व कपास तथा रेशेदार पौधों में इसकी मात्रा बहुत अधिक होती है। काष्ठ में लगभग 50% तथा कपास के रेशे में इसकी मात्रा लगभग 90% होती है। मनुष्य द्वारा सेलुलोस का उपयोग ईंधन तथा इमारती लकड़ी के रूप में, तन्तुओं के रूप में वस्त्र निर्माण, कृत्रिम रेशे निर्माण, कागज निर्माण में प्रमुखता से किया जाता है। नाइट्रोसेलुलोस का उपयोग विस्फोटक पदार्थ के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग पारदर्शी प्लास्टिक सेलुलॉयड, (celluloid) बनाने के लिए किया जाता है जिससे खिलौने, कंघे आदि बनाए जाते हैं। मनुष्य‘सेलुलोस का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनस्पतियों को हानि पहुँचा रहा है। इसके फलस्वरूप प्राकृतिक वन क्षेत्रों में निरन्तर कमी होती जा रही है। पारितन्त्र के प्रभावित होने के कारण अनेक पादप प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही हैं।

Question - 15 : - एन्जाइम के महत्त्वपूर्ण गुणों का वर्णन कीजिए।

Answer - 15 : -

एन्जाइमों के महत्त्वपूर्ण गुण निम्नवत् हैं-
1. विकर (enzymes), उत्प्रेरकों (catalyst) के रूप में कार्य करते हैं और जीवों (living organisms) में अभिक्रिया की दर (rate of reaction) को प्रभावित करते हैं।
2. क्रियाधारों (reactants or substrate) को उत्पादों (products) में बदलने के लिए एन्जाइम की बहुत सूक्ष्म मात्रा अथवा सान्द्रता की आवश्यकता होती है।
3. एन्जाइम उत्प्रेरक (enzyme catalyst) उच्च अणुभार के, जटिल, नाइट्रोजनी कार्बनिकः यौगिक, प्रोटीन होते हैं जो जीवित कोशिकाओं में उत्पन्न होते हैं। एन्जाइम का अणु उसके क्रियाधार के अणु की तुलना में बहुत बड़ा होता है। एन्जाइम का आणविक भार हजारों से लेकर लाखों तक होता है, जबकि क्रियाधारों का अणुभार प्रायः कुछ सैकड़ों में ही होता है।
4. ये किसी रासायनिक क्रिया को प्रारम्भ नहीं करते, बल्कि क्रिया की गति को उत्प्रेरित (catalysed) करते हैं।
5. अधिकांश एन्जाइम जल अथवा नमक के घोल में घुलनशील होते हैं। कोशिकाद्रव्य में ये कोलॉइडी (colloidal) विलयन बनाते हैं।
6. एन्जाइम जीवों में होने वाली समस्त शरीर-क्रियात्मक अभिक्रियाओं (physiological reactions), जैसे-जल-अपघटन, ऑक्सीकरण, अपचयन, अपघटन आदि को उत्प्रेरित करते हैं।
7. एन्जाइम प्रायः विशिष्ट (specific) होते हैं, अर्थात् एक एन्जाइम एक विशेष क्रिया का ही उत्प्रेरण करता है। उदाहरणार्थ-एन्जाइम इन्वटेंस (invertase) केवल सुक्रोस के जल-अपघटन को उत्प्रेरित करता है।
इन्वटेंस (invertase) एन्जाइम द्वारा माल्टोस का ग्लूकोस में जल-अपघटन उत्प्रेरित नहीं होता
8. एन्जाइम ताप परिवर्तन से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। किसी एन्जाइम की उत्प्रेरक सक्रियता जिस ताप पर सर्वाधिक होती है उसे अनुकूलन ताप (optimum temperature) कहते हैं। अनुकूलन ताप पर अभिक्रिया की दर उच्चतम होती है। अधिक ताप पर एन्जाइम की विकृति (denatured) हो जाती है अर्थात् एन्जाइम की प्रोटीन संरचना और उसकी उत्प्रेरक सक्रियता नष्ट हो जाती है। एन्जाइमों का अनुकूलन ताप साधारणत: 25-40°C होता है। बहुत कम ताप पर एन्जाइम निष्क्रिय (inactive) हो जाते हैं।
9. एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं की दर pH परिवर्तमं से बहुत प्रभावित होती है। प्रत्येक एन्जाइम एक विशेष pH माध्यम में ही पूर्ण सक्रिय होता है। प्रत्येक एन्जाइम की उत्प्रेरक सक्रियता जिस pH पर अधिकतम होती है उसे अनुकूलनःH (optimum pH) कहते हैं। एन्जाइमों की अनुकूलन pH साधारणत: 5-7 होती है।
10. कुछ एन्जाइम अम्लीय माध्यम में तथा कुछ क्षारीय माध्यम में क्रिया करते हैं।
11. कुछ एन्जाइम कोशिका के अन्दर सक्रिय होते हैं तथा कुछ एन्जाइम कोशिका के बाहर भी सक्रिय होते हैं।

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