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Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई (Cell The Unit of Life) Solutions

Question - 11 : - केन्द्रक छिद्र क्या है? इनके कार्य बताइए।

Answer - 11 : -

केन्द्रक छिद्र
केन्द्रक के चारों ओर 10 nm से 50 nm मोटी दोहरी केन्द्रक-कला (nuclear membrane) होती है। दोनों झिल्लियों (कलाओं) के मध्य स्थान को परिकेन्द्रकीय स्थान (perinuclear space) कहते हैं।  यह लगभग 100-300 Åचौड़ी होती है। केन्द्रक कला पर अनेक सूक्ष्म छिद्र होते हैं। इन्हें केन्द्रक छिद्र (nuclear pores) कहते हैं। प्रत्येक का व्यास लगभग 400-1000 Å होता है। केन्द्रक-कला का सम्बन्ध कोशिकाद्रव्य में स्थित अन्त:प्रद्रयी जालिका (ER) से होता है।

कार्य :
केन्द्रक में निर्मित विभिन्न प्रकार के R.N.A. अणु विशेषकर m-R.N.A. केन्द्रक कला छिद्रों से होकर कोशिकाद्रव्य में पहुँचते हैं और प्रोटीन संश्लेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Question - 12 : - लयनकाय तथा रसधानी दोनों अन्तः झिल्लीमय संरचनाएँ हैं परन्तु कार्य की दृष्टि से ये अलग होते हैं। इस पर टिप्पणी लिखें।

Answer - 12 : - लयनकाय (lysosome) एकक कला युक्त थैली है जो गॉल्जी काय से बनती है। इसमें हाइड्रोलिटिक विकर होते हैं; जैसे-लाइपेज, ओप्टिएज आदि जो अम्लीय pH में सक्रिय होते हैं। ये विकर कार्बोहाइड्रेट,  प्रोटीन, वसा, न्यूक्लिक अम्ल आदि का पाचन करते हैं। रसधान्ने (vacuole) कोशिकाद्रव्य में उपस्थित थैलीनुमा संरचना है जो एकक कला टोनोप्लास्ट से घिरी रहती है। इसमें जल, उत्सर्जी पदार्थ  जो कोशिका के लिए आवश्यक नहीं हैं तथा कोशिका रस मिलता है। पौधों में ये कोशिका आयतन का 90 प्रतिशत घेर लेती है। पौधों में टोनोप्लास्ट आयन तथा अन्य पदार्थों का सान्द्रता विभव के विरुद्ध  रसधानियों में आना सुनिश्चित रहता है। अतः रसधानी में सान्द्रता कोशिकाद्रव्य से अधिक रहती है। अमीबा में संकुचनशील रसधानी मिलती है जो उत्सर्जन का कार्य करती है। प्रोटिस्टा के सदस्यों में खाद्य  वेक्युओल मिलते हैं जो खाद्य पदार्थों के निगलने के कारण बनते हैं।

Question - 13 : -
रेखांकित चित्र की सहायता से निम्नलिखित की संरचना का वर्णन कीजिए
(i) केन्द्रक
(ii) तारककाय।

Answer - 13 : -

(i) केन्द्रक 
सामान्यतः कोशिका का सबसे बड़ा, स्पष्ट तथा महत्त्वपूर्ण कोशिकांग केन्द्रक है। सर्वप्रथम इसकी खोज रॉबर्ट ब्राउन (1831) ने की। यह एक सघन, गोल अथवा अण्डाकार संरचना है। एक कोशिका में इनकी  संख्या सामान्यतः एक (एककेन्द्रकीय; uninucleate) होती है। कभी-कभी इनकी संख्या दो (द्विकेन्द्रकी, binucleate) अथवा अनेक (बहुकेन्द्रकी multinucleate) होती है। पादप कोशिका के  परिपक्वन के साथ-साथ रिक्तिका के केन्द्र में स्थित होने से यह कोशिका दृति (primordial utricle) में एक ओर आ जाता है।
1. संरचना (Structure) :
केन्द्रक के चारों ओर दोहरी केन्द्रक कला  (nuclear membrane) मिलती है। यह कला एकक कला (unit membrane) के समान ही लिपोप्रोटीन की बनी होती है। दोनों कलाओं के मध्य परिकेन्द्रीय स्थान (perinuclear space)  मिलता है। केन्द्रक कला सतत (continuous) नहीं होती है। इसमें बीच-बीच में छिद्र मिलते हैं। इन्हें केन्द्रकीय छिद्र (nuclear pore) कहते हैं। इनका व्यास लगभग 400 होता है। ये  केन्द्रकद्रव्य तथा कोशिकाद्रव्य में सम्बन्ध बनाए रखते हैं। बाह्य केन्द्रक कला का सम्बन्ध अन्तर्द्रव्यी जालिका से होता है। बाहरी केन्द्रक कला पर राइबोसोम चिपके रहते हैं (चित्र)।। केन्द्रक कला के  अन्दर प्रोटीनयुक्त सघन तरल होता है, जिसे केन्द्रकद्रव्य (nucleoplasm) कहते हैं। केन्द्रकद्रव्य में प्रोटीन तथा फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है। इसमें न्यूक्लियोप्रोटीन (nucleoprotein)  मिलते हैं। केन्द्रकद्रव्य में केन्द्रिक (nucleolus) तथा क्रोमैटिन (chromatin) सूत्र मिलते हैं। केन्द्रिक सामान्यतः एक, परन्तु कभी-कभी अधिक भी हो सकते हैं। केन्द्रिक में r-R.N.A. संश्लेषण होता है,  जो राइबोसोम के लिए आवश्यक है। केन्द्रिक कोशिका विभाजन के समय लुप्त हो जाते हैं।
2. क्रोमैटिन सूत्र (Chromatin threads) :
सामान्य अवस्था में जाल के रूप में रहते हैं। इसका कुछ भाग अभिरंजन में गहरा रंग लेता है जिसे हेटरोक्रोमैटिन कहते हैं तथा जो भाग हल्का रंग लेता है, उसे यूक्रोमैटिन (euchromatin) कहते हैं।  कोशिका विभाजन के समय ये संघनित होकर गुणसूत्र बनाते हैं।
केन्द्रक के कार्य
केन्द्रक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
1. सम्पूर्ण कोशिका की संरचना, संगठन व कार्यों का नियन्त्रण तथा नियमन करना।
2. D.N.A. पर उपस्थित संदेश m-R.N.A. के रूप में कोशिकाद्रव्य में जाते हैं और वहाँ प्रोटीन के रूप में अनुवादित होते हैं।
3. प्रोटीन से विभिन्न विकर बनते हैं जो विभिन्न उपापचयी क्रियाओं का नियन्त्रण करते हैं।
4. कोशिका विभाजन का उत्तरदायित्व केन्द्रक पर होता है।
5. आनुवंशिक पदार्थ D.N.A केन्द्रक में मिलता है। संतति में लक्षण इसी के द्वारा पहुँचते हैं।
6. नई संतति में जीन ही लक्षणों को पहुँचाते हैं तथा संगठित स्वरूप प्रदान करते हैं।
(ii) तारककाय
तारककाय प्रायः जन्तु कोशिकाओं में केन्द्रक के समीप पाया जाता है। कुछ शैवाल तथा कवक आदि की पादप कोशिकाओं में भी तारककाय पाया जाता है। तारककार्य में दो सेन्ट्रिओल (centriole) पाए  जाते हैं। प्रत्येक सेन्ट्रिओल नौ जोड़े (nine sets) त्रिक तन्तुओं (triplets fibres) से बना होता है। प्रत्येक त्रिक तन्तु में तीन सूक्ष्म नलिकाएँ (microtubules) एक रेखा में स्थित होती हैं।  ये त्रिक तन्तु एमॉरफस पदार्थ में धंसे रहते हैं। सेन्ट्रिओल के चारों ओर स्वच्छ कोशिकाद्रव्य का आवरण होता है, इसे सेन्ट्रोस्फीयर (centrosphere) कहते हैं। सेन्ट्रिओल तथा सेन्ट्रोस्फीयर मिलकर  तारककाय (centrosome) कहलाते हैं।
तारककाय के कार्य
1. यह कोशिका विभाजन के समय त (spindle) का निर्माण करता है। तारककाय विभाजित होकर विपरीत ध्रुवों का निर्माण करता है।
2. शुक्राणुओं के निर्माण के समय दोनों सेन्ट्रियोल में से एक शुक्राणु के अक्षीय तन्तु (axial filament) का निर्माण करता है।

Question - 14 : - गुणसूत्र बिन्दु क्या है? गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र का वर्गीकरण किस रूप में होता है? अपने  उत्तर को देने हेतु विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों पर गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति को दर्शाने हेतु चित्र बनाइए।

Answer - 14 : -

गुणसूत्र बिन्दु
प्रत्येक गुणसूत्र दो अर्द्धगुणसूत्र या क्रोमेटिड्स (chromatids) से बना होता है। क्रोमेटिड्स पर क्रोमोमीयर्स (chromomeres) स्थित होते हैं। गुणसूत्र के दोनों क्रोमेटिड्स गुणसूत्र बिन्दु या सेन्ट्रोमीयर  (centromere) द्वारा परस्पर जुड़े होते हैं। गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्रे निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
1. अन्तकेन्द्री (Telocentric) :
इसमें गुणसूत्र बिन्दु गुणसूत्र के एक ओर स्थित होता है।
2. अग्र बिन्दु (Acrocentric) :
इसमें गुणसूत्र का एक भाग बहुत छोटा तथा दूसरा भाग बहुत बड़ा होता है। इसमें गुणसूत्र बिन्दु एक सिरे के पास स्थित होता है।
3. उपमध्य केन्द्री (Submetacentric) :
इसमें गुणसूत्र बिन्दु एक किनारे के पास होता है। इसे गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ असमान होती हैं।
4. मध्य केन्द्री (Metacentric) :
इसमें गुणसूत्र बिन्दु गुणसूत्र के बीचों-बीच स्थित होता है। इससे गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ बराबर लम्बाई की होती हैं।
जब गुणसूत्र में गुणसूत्र बिन्दु (centromere) नहीं पाया जाता तो गुणसूत्र को एसेन्ट्रिक (acentric) कहते हैं और जब गुणसूत्र बिन्दु की संख्या दो या अधिक होती है तो इसे डाइसेन्ट्रिक  (dicentric) या पॉलीसेन्ट्रिक (polycentric) कहते हैं। कुछ गुणसूत्रों में द्वितीयक संकीर्णन (secondary constriction) पाया जाता है। इस प्रकार के गुणसूत्र को सैट गुणसूत्र  (sat-chromosome) कहते हैं।

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