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Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर (Anatomy of Flowering Plants) Solutions

Question - 11 : - पादप शारीर का अध्ययन हमारे लिए कैसे उपयोगी है?

Answer - 11 : - फार्माकोचोसी (Pharmaconosy) विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत औषधीय महत्त्व के पदार्थों के स्रोत, विशेषताओं और उनके उपयोग का अध्ययन प्राकृतिक अवस्था में किया जाता है। यह अध्ययन मुख्य रूप से पौधों के शारीर (anatomy) पर निर्भर करता है। इमारती लकड़ी (timber) की दिन-प्रतिदिन कमी होती जा रही है, इसीलिए अच्छी इमारती लकड़ीके स्थान पर खराब इमारती लकड़ी का उपयोग किया जा रहा है। शारीर अध्ययन द्वारा लकड़ी की किस्म (quality) का पता लगाया जा सकता है। शारीर अध्ययन द्वारा एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री तने और जड़ की पहचान की जा सकती है। जीवाश्म शारीर (fossil anatomy) अध्ययन द्वारा प्राचीनकालीन पौधों का ज्ञान होता है। इससे जैवविकास का ज्ञान होता है कि आधुनिक पौधों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई है। सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन द्वारा चाय, कॉफी, तम्बाकू, केसर, हींग, वनस्पति रंगों, पादप औषधियों में मिलावट (adulteration) का अध्ययन किया जा सकता है। मिलावट के कारण इनकी आन्तरिक संरचना में भिन्नता आ जाती है।

Question - 12 : - परिचर्म क्या है? द्विबीजपत्री तने में परिचर्म कैसे बनता है?

Answer - 12 : -

परिचर्म (Periderm) :
कॉर्क एधा की जीवित मृदूतक कोशिका से परिचर्म का निर्माण होता है। कॉर्क एधा या कागजन (cork cambium or phellogen) की कोशिकाएँ विभाजित होकर परिधि की ओर जो कोशिकाएँ बनाती हैं, वे सुबेरिनयुक्त (suberinized) कोशिकाएँ होती हैं। सुबेरिनयुक्त कोशिकाओं से बना यह स्तर कॉर्क या फेलम (cork or phellem) कहलाता है। कॉर्क एधा (cork cambium) से भीतर की ओर बनने वाली मृदूतकीय कोशिकाएँ द्वितीयक वल्कुट या फेलोडर्म (phelloderm) बनाती हैं। फेलम (कॉर्क), कॉर्क एधा तथा द्वितीयक वल्कुट मिलकर परिचर्म (periderm) बनाती हैं।

Question - 13 : - पृष्ठाधर पत्ती की भीतरी रचना का वर्णन चिह्नित चित्रों की सहायता से कीजिए।

Answer - 13 : -

पृष्ठाधर या द्विबीजपत्री पत्ती की संरचना
द्विबीजपत्री पौधों की पत्ती की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई देती हैं
(क)
बाह्यत्वचा (Epidermis) :
बाह्यत्वचा सामान्यत: दोनों सतहों पर एककोशिकीय मोटे स्तर के रूप में होती है।
(i) ऊपरी बाह्यत्वचा :
यह एक कोशिका मोटा स्तर है। इसकी कोशिकाएँ ढोलकनुमा परस्पर एक-दूसरे से सटी हुई होती हैं। इन कोशिकाओं की बाहरी भित्ति उपचर्म-युक्त होती है। कोशिकाओं में साधारणत: हरितलवक नहीं होते हैं। कुछ पौधों (प्रायः शुष्क स्थानों में उगने वाले पौधों में) में बहुस्तरीय बाह्यत्वचा (multiple epidermis) पाई जाती हैं।
(ii) निचली बाह्यत्वचा :
निचली बाह्यत्वचा एक कोशिका मोटे स्तर रूप में पाई जाती है। इस पर पतला उपचर्म होता है। रन्ध्र बहुतायत में पाए जाते हैं। रन्ध्रों की रक्षक कोशिकाओं में हरितलवक पाए जाते हैं। कुछ पत्तियों की ऊपरी बाह्यत्वचा पर भी रन्ध्र होते हैं, किन्तु इनकी संख्या सदैव कम होती है।
(ख)
पर्णमध्योतक (Mesophyll) :
दोनों बाह्यत्वचाओं के मध्य स्थित सम्पूर्ण ऊतक (संवहन बण्डलों को छोड़कर) पर्णमध्योतक कहलाता है। पृष्ठाधर पत्तियों में पर्णमध्योतक दो प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनता है
(i) खम्भ ऊतक (Palisade tissue) :
ऊपरी बाह्यत्वचा के नीचे लम्बी, खम्भाकार कोशिकाएँ दो-तीन पर्यों में लगी होती हैं। इन कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशिकीय स्थान बहुत कम या नहीं होते हैं। ये रूपान्तरित मृदूतकीय कोशिकाएँ होती हैं। यह प्रकाश संश्लेषी (photosynthetic) ऊतक है।
(ii) स्पंजी ऊतक (Spongy tissue) :
खम्भ मृदूतक से लेकर निचली बाह्यत्वचा तक स्पंजी मृदूतक ही होता है। ये कोशिकाएँ सामान्यतः गोल और ढीली व्यवस्था में अर्थात् काफी और स्पष्ट अन्तराकोशिकीय स्थान वाली होती हैं। इन कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट्स कम संख्या में होते हैं। मध्य शिरा में संवहन पूल के ऊपर तथा नीचे दृढ़ोतक या स्थूलकोण ऊतक पाया जाता है।
(ग)
संवहन पूल (Vascular bundles) :
पत्ती की अनुप्रस्थ काट में अनेक छोटी-छोटी शिराएँ संवहन पूलों के रूप में दिखाई पड़ती हैं। संवहन पूल जाइलम और फ्लोएम के मिलने से बनता है। आदिदारु (protoxylem) सदैव ऊपरी बाह्यत्वचा की ओर होती है, जबकि अनुदारु (metaxylem) निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। फ्लोएम निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। जाइलम और फ्लोएम के मध्य एधा (cambium) होती है। इस प्रकार संवहन पूल संयुक्त (conjoint), समपार्श्व (collateral) तथा वध (open) होते हैं। प्रत्येक संवहन पूल दृढ़ोतक रेशों से घिरा होता है तथा इसके बाहर मृदूतकीय कोशिकाओं का पूलीय आच्छद होता है। यह बण्डल आच्छद सामान्यत: छोटी-से-छोटी शिरा के चारों ओर भी होता है।

Question - 14 : - त्वक् कोशिकाओं की रचना तथा स्थिति उन्हें किस प्रकार विशिष्ट कार्य करने में सहायता करती है?

Answer - 14 : -

त्वक कोशिकाएँ
ये पादप शरीर के सभी भागों पर सबसे बाहरी रक्षात्मक आवरण बनाती हैं। यह प्रायः एक कोशिका मोटा स्तर होता है। कोशिकाएँ अनुप्रस्थ काट में ढोलकनुमा (barrel shaped) दिखाई देती हैं। बाहर से देखने पर ये अनियमित आकार की फर्श के टाइल्स की तरह अथवा बहुभुजीय दिखाई देती हैं। ये परस्पर एक-दूसरे से मिलकर अखण्ड सतह बनाती हैं। ये कोशिकाएँ मृदूतकीय कोशिकाओं का रूपान्तरण होती हैं। इन कोशिकाओं में कोशिकाद्रव्य की मात्रा बहुत कम होती है तथा प्रत्येककोशिका में एक बड़ी रिक्तिका होती है। पौधे के वायवीय भागों की त्वक् कोशिकाएँ उपचर्म (cuticle) से ढकी होती हैं, परन्तु मूलीय त्वचा की कोशिकाओं पर उपचर्म की रक्षात्मक आवरण नहीं होता। तने, पत्ती आदि की त्वक् कोशिकाओं के मध्य रन्ध्र (stomata) पाए जाते हैं। रन्ध्र द्वार कोशिकाओं (guard cells) से घिरे होते हैं। द्वार कोशिकाएँ वृक्काकार होती हैं। द्वार कोशिकाओं के चारों ओर पाई जाने वाली कोशिकाओं को सहायक कोशिकाएँ कहते हैं। रन्ध्रों का खुलना तथा बन्द होना रक्षक कोशिकाओं की आशूनता पर निर्भर करता है। रन्ध्र वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों के आदान प्रदान का कार्य करते हैं। रन्ध्रों की स्थिति, संख्या, संरचना, उपचर्म की मोटाई आदि वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करती है।
जड़ों की त्वक कोशिकाओं से एककोशिकीय मूलरोम बनते हैं। ये मृदा से जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करते हैं। तने और पत्तियों की त्वक्को शिकाओं से बहुकोशिकीय रोम बनते हैं। पत्ती एवं तने की रोमयुक्त सतह वाष्पोत्सर्जन की दर को नियन्त्रित करने में सहायक होती है। रन्ध्रों के रोमों से ढके रहने के कारण मरुभिद् पौधों में वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। त्वक् कोशिकाएँ वातावरणीय दुष्प्रभावों से पौधों की सुरक्षा करती हैं।

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