Question -
Answer -
परासरण नियमन वृक्क शरीर से हानिकारक पदार्थों को मूत्र के रूप में शरीर से निरन्तर बाहर निकालते रहते हैं। इसके अतिरिक्त ऊतक तरल में लवणों और जल की मात्रा का नियन्त्रण भी करते हैं। शरीर में जल की मात्रा के बढ़ जाने अर्थात् शरीर के तरल की परासरणीयता (osmotality) के कम हो जाने पर मूत्र पतला (तनु) हो जाता है और उसकी मात्रा बढ़ जाती है। शरीर में जल की कमी होने पर अर्थात् शरीर के ऊतक तरल की परासरणीयता के बढ़ जाने पर मूत्र गाढ़ा हो जाता है और इसकी मात्रा कम हो जाती है। मूत्र की मात्रा का नियन्त्रण मुख्यतः ऐल्डोस्टेरॉन (aldosterone) तथा एण्टीडाइयूरेटिक (antidiuretic hormone, ADH) द्वारा होता है। ऐल्डोस्टेरॉन Na+ के पुनरावशोषण को बढ़ाता है, जिससे अन्त:वातावरण में Na+ की उपयुक्त मात्रा बनी रहे। एण्टीडाइयूरेटिक (ADH) या वैसोप्रेसिन (vasopressin) मूत्र के तनुकरण या सान्द्रण का प्रमुख नियन्त्रक होता है। परासरण नियमन प्रक्रिया द्वारा जीवधारी के शरीर में परासरणीयता (osmotality) को नियन्त्रित रखा जाता है।