Question -
Answer -
केंचुए का रुधिर परिसंचरण तन्त्र केंचुए में रुधिर परिसंचरण ‘बन्द प्रकार का होता है। रुधिर लाल होता है। हीमोग्लोबिन प्लाज्मा में घुला होता है। रुधिराणु रंगहीन तथा केन्द्रकमय होते हैं। केंचुए के रुधिर परिसंचरण में निम्नलिखित । अनुदैर्घ्य रुधिर वाहिनियाँ होती हैं
(i) पृष्ठ रुधिरवाहिनी (Dorsal Blood Vessel) :
यह आहारनाल के मध्य पृष्ठ तल पर स्थित होती है। यह पेशीय, कपाटयुक्त रुधिरवाहिनी होती है। यह अन्तिम खण्डों से रुधिर एकत्र करके प्रथम 13 खण्डों में वितरित कर देती है। रुधिर का अधिकांश भाग चार जोड़ी हृदय द्वारा अधर रुधिरवाहिनी में पहुँच जाता है।
(ii) अधर रुधिरवाहिनी (Ventral Blood vessel) :
यह आहारनाल के मध्य अधर तल पर स्थित होती है। यह अनुप्रस्थ रुधिर वाहिनियों द्वारा रुधिर का वितरण करती है। इसमें कपाट नहीं पाए। जाते।
(iii) पाश्र्व ग्रसनिका रुधिर वाहिनियाँ (Lateral Oesophageal Blood vessels) :
एक जोड़ी रुधिर वाहिनियाँ दूसरे खण्ड से 14वें खण्ड तक आहारनाल के पाश्र्यों में स्थित होती हैं। ये रुधिर एकत्र करके ग्रसिकोपरि वाहिनी (supra-oesophageal blood vessel) को पहुँचाती हैं।
(iv) ग्रसिकोपरि वाहिनी (Supra-oesophageal Blood Vessel) :
यह आहारनाल के पृष्ठ तल पर 9वें खण्ड से 14वें खण्ड तक फैली होती है। यह पाश्र्व ग्रसनिका से 2 जोड़ी अग्रलूपों (anterior loops) द्वारा रुधिर एकत्र करके अधर रुधिरवाहिनी को पहुँचा देती है।
(v) अधो तन्त्रिकीय रुधिरवाहिनी (Sub-neural Blood vessel) :
यह आहारनाल के आंत्रीय भाग में तन्त्रिका रज्जु के नीचे मध्य-अधर तल पर स्थित होती है। यह खण्डीय भागों से रुधिर एकत्र करके योजि वाहिनियों द्वारा पृष्ठ रुधिरवाहिनी में पहुँचा देती है।’