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Question -

सन यात-सेन के तीन सिद्धान्त क्या थे?



Answer -

सन यात-सेन 

सन यात-सेन जन्म से ही क्रान्तिकारी थे। उन्होंने मंचू सरकार को हटाकर चीन में गणतन्त्र की स्थापना की थी। वे लोकतन्त्र के समर्थक थे। यह सही है कि डॉ० सेन की राजनीतिक विचारधारा रूस के साम्यवादी दर्शन से बहुत अधिक प्रभावित थी और उन्होंने अपने देश में साम्यवादी ढंग से परिवर्तन लाने का प्रयास भी किया था। फिर भी वे साम्यवादी दर्शन के अन्धभक्त नहीं थे। वे यह अच्छी तरह से जानते थे कि रूस श्रमिकों का देश है और उनका देश चीन किसानों का, इसलिए उन्होंने अपने राजनीतिक विचारों को अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल ही बनाया।

डॉ० सेन के तीन सिद्धान्त

डॉ० सन यात-सेन ने अपने क्रान्तिकारी जीवन के प्रारम्भ से ही अपने राजनीतिक विचारों को तीन सिद्धान्तों के रूप में रख दिया था। ये सिद्धान्त निम्नलिखित थे

राष्ट्रीयता :
चीन में सदियों से जहाँ एक ओर सांस्कृतिक एकता तो मौजूद थी, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक एकता को पूर्ण अभाव था। यह अभाव बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में भी विद्यमान था। जनता में स्थानीय तथा प्रान्तीय भावनाएँ शक्तिशाली थीं। यही कारण था कि विदेशी साम्राज्यवादी शक्तियाँ चीन में अपना प्रभाव स्थापित करने में सफल हो रही थीं। डॉ० सन यात-सेन
 राजनीतिक लोकतन्त्र :
डॉ० सन यात-सेन लोकतन्त्र के पक्के समर्थक थे। इसी कारण उन्होंने चीन में सदियों से चले आ रहे मंचू राजवंश को समाप्त करके राजवंश की प्राचीन परम्परा को समाप्त कर दिया था। उन्हें जनता की शक्ति में विश्वास था और यही कारण था कि वे लोकतन्त्र के समर्थक थे। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन विदेशों के गणतन्त्रीय वातावरण में व्यतीत किया था और स्वयं वहाँ के विकास को देखा था। यही कारण था कि उन्होंने चीन में क्रान्ति करके गणतन्त्र की स्थापना को अपने जीवन का पवित्र लक्ष्य बना लिया था। 1924 ई० में लोकतन्त्र के विषय में उनके विचार बहुत अधिक मजबूत हो गए थे। उनका विचार था “सफल लोकतन्त्र में सरकार की शासन प्रणाली, कानून, कार्य, न्याय, परीक्षा तथा नियन्त्रण के पंच शक्ति विधान पर आधारित होनी चाहिए।’ लोकतन्त्र को सफलता की अन्तिम चोटी पर पहुँचने के लिए सेन ने तीन बातों पर विशेष बल दिया था। सबसे पहले देश में सैनिक शक्ति के प्रभुत्व की स्थापना करके देश में पूरी शान्ति तथा व्यवस्था स्थापित की जाए। इसके बाद देश में राजनीतिक चेतना का प्रसार किया जाए और अन्त में वैधानिक तथा लोकतन्त्रीय सरकार को निर्माण करके देश अपने लक्ष्यों को प्राप्त करें।
जनता की आजीविका :
सन यात-सेन ने मानव जीवन में भोजन की भारी आवश्यकता का अच्छी तरह से अनुभव कर लिया था और यही कारण था कि उन्होंने कृषक वर्ग के उत्थान की ओर अधिक ध्यान दिया। उनका मत था कि ‘भूमि उसकी है जो उसे जोतता है। समाज के अन्य वर्गों की जीविका के प्रश्न का समाधान वे सामाजिक विकास के साथ करना चाहते थे। वे साम्यवादियों के समान भूमि के समान वितरण के सिद्धान्त के पक्ष में थे। इस समय उनकी नीति एक प्रबल साम्यवादी की न होकर एक समाज-सुधारक की नीति थी परन्तु वे मार्क्स के भौतिकवाद के विरोधी थे और अच्छी तरह से यह अनुभव करते थे कि मार्क्स के सिद्धान्तों को चीन में लागू नहीं किया जा सकता है। सन यात-सेन के तीन सिद्धान्तों पर विचार करने के पश्चात् यह स्पष्ट होता है कि डॉ० सेन के सिद्धान्त माक्र्सवाद से बिल्कुल भिन्न थे। सेन के राष्ट्रीयता, लोकतन्त्र और जनता की जीविका के सिद्धान्तों में मार्क्स के वर्ग संघर्ष का कोई स्थान नहीं है और न ही इन सिद्धान्तों में मार्क्स के समाजवादी अर्थतन्त्र की स्थापना के लिए कोई विशेष बल दिया गया है। इससे स्पष्ट हो जाता है। कि सन यात-सेन न तो मार्क्स की शुद्ध समाजवादी विचारधारा के समर्थक थे और न ही साम्यवादी नीति का अन्धानुकरण करने वाले थे। इस प्रकार सन यात-सेन को साम्यवाद का कट्टर समर्थक नहीं कहा जा सकता है।

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