Chapter 5 भारत में मानव पूँजी का निर्माण Solutions
Question - 11 : - विश्व भर में औसत शैक्षिक स्तर में सुधार के साथ-साथ विषमताओं में कमी की प्रवृत्ति| पाई गई है। टिप्पणी करें।
Answer - 11 : -
शिक्षा मामेव पूँजी निर्माण का मुख्य स्रोत है। शिक्षा से अच्छे नागरिक उभरकर आते हैं। एक शिक्षित व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति की तुलना में पर्यावरण को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकता है। शिक्षा से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है। देश के सभी क्षेत्रों के प्राकृतिक तथा मानवीय साधनों के प्रयोग को शिक्षा सुविधाजनक बनाती है। शिक्षा से लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है। शिक्षा से नई तकनीक को स्वीकार करने की योग्यता आती है। अधिक आय उपार्जन हेतु साक्षर मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास कर सकता है। इन सब कारकों से व्यक्ति की आय में वृद्धि होती है। आम आदमी की आय बढ़ने से उच्च एवं निम्न आय वर्ग की दूरी घटने लगती है। इस प्रकार शिक्षा में विषमताओं में कमी की प्रवृत्ति पाई जाती है। दूसरे शब्दों में, शैक्षिक सुधार आर्थिक व सामाजिक विषमताओं में कमी लाता है।
Question - 12 : - किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका का विश्लेषण करें।
Answer - 12 : -
आर्थिक विकास को आर्थिक संवृद्धि के रूप में देखा जा सकता है यदि संवृद्धि के साथ-साथ साधनों का वितरण समान हो। शिक्षा मानव पूँजी का स्रोत है। किसी साक्षर व्यक्ति के श्रम-कौशल निरक्षर व्यक्ति से अधिक होते हैं। इसी कारण से साक्षर व्यक्ति निरक्षर व्यक्ति की तुलना में अधिक आय अर्जित कर लेता है और आर्थिक संवृद्धि में उसका योगदान भी अधिक होता है। शिक्षा से व्यक्ति ही नहीं समाज भी लाभान्वित होता है। शिक्षा केवल मनुष्य की उत्पादकता को ही नहीं बढ़ाती है बल्कि उसे ज्यादा समझदार, जागरूक व अनुकूलन योग्य बनाती है। शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता, नई प्रौद्योगिकी को अपनाने में भी सहायक होती है। इस प्रकार कुशलता से संवर्द्धित व्यक्ति शहर के आर्थिक विकास के लिए ज्यादा योगदान देता है।
Question - 13 : - समझाइए कि शिक्षा में निवेश आर्थिक संवृद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
Answer - 13 : -
व्यक्ति अपनी भावी आय बढ़ाने के लिए शिक्षा पर निवेश करता है। एक साक्षर व्यक्ति को श्रम-कौशल एक निरक्षर की तुलना में अधिक होता है। शिक्षा न केवल श्रम की उत्पादकता को बढ़ाती है। बल्कि यह साथ-ही-साथ परिवर्तन को प्रोत्साहित कर नवीन प्रौद्योगिकी को आत्मसात करने की क्षमता भी विकसित करती है। शिक्षा समाज में परिवर्तनों एवं वैज्ञानिक प्रगति को समझ पाने की क्षमता प्रदान करती है जिससे आविष्कारों एवं नव-परिवर्तनों में सहायता मिलती है। शिक्षित एवं कुशल श्रमिक भौतिक साधनों का प्रयोग करके ज्यादा और उच्च गुणवत्ता का उत्पादन करके आर्थिक संवृद्धि को जन्म देते हैं। इस प्रकार शिक्षा में निवेश से आर्थिक संवृद्धि में भी बढ़ोत्तरी होती है।
Question - 14 : - किसी व्यक्ति के लिए कार्य के दौरान प्रशिक्षण क्यों आवश्यक होता है?
Answer - 14 : -
आजकल फर्मे अपने कर्मचारियों के कार्यस्थल पर प्रशिक्षण में व्यय करती हैं। कार्य के दौरान प्रशिक्षण कई प्रकार से दिया जा सकता है; जैसे
1. फर्म के अपने कार्यस्थल पर ही पहले से काम को जानने वाले कुशलकर्मी कर्मचारियों को काम सिखा सकते हैं।
2. कर्मचारियों को किसी अन्य संस्थान/स्थान पर प्रशिक्षण पाने के लिए भेजा जा सकता है। दोनों ही विधियों में फर्म अपने कर्मचारियों के प्रशिक्षण के प्रशिक्षण का कुछ व्यय वहन करती है तथा इस बात पर बल देती है कि प्रशिक्षण के बाद वे कर्मचारी एक निश्चित अवधि तक फर्म के पास ही कार्य करें। इस प्रकार फर्म उनके प्रशिक्षण पर किए गए व्यय की उगाही अधिक उत्पादकता से हुए लाभ के रूप में कर पाने में सफल रहती है। प्रशिक्षण से श्रम-उत्पादकता एवं गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है। इस कारण कार्य के दौरान प्रशिक्षण आवश्यक होता है।
Question - 15 : - मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि के बीच संबंध स्पष्ट करें। ”
Answer - 15 : -
मानव पूँजी एवं आर्थिक संवृद्धि एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं अर्थात् एक ओर जहाँ प्रवाहित उच्च आय उच्च स्तर पर मानव पूंजी के सृजन का कारण बन सकती है तो दूसरी ओर उच्च स्तर पर मानव पूँजी निर्माण से आय की संवृद्धि में सहायता मिल सकती है।
Question - 16 : - भारत में स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन की आवश्यकता पर चर्चा करें।
Answer - 16 : -
भारत में स्त्री शिक्षा दर (65.46%) अभी तक पुरुष शिक्षा दर (82.14%) से कम है। ग्रामीण स्त्री शिक्षा दर लगभग 54 है जो शहरी स्त्री शिक्षा दर 87% की अपेक्षा बहुत कम है। इसीलिए आज महिला शिक्षा को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है
- समाज में महिलाओं का सामाजिक स्तर ऊँचा उठाने के लिए।
- स्त्रियों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए।
- महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करने के लिए।
- महिलाओं की स्वास्थ्य देख-रेख एवं बच्चों की शिक्षा के लिए महिला शिक्षा आवश्यक है।
Question - 17 : - शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में सरकार के विविध प्रकार के हस्तक्षेपों के पक्ष में तर्क दीजिए।
Answer - 17 : -
शिक्षा एवं स्वास्थ्य आधारिक संरचना के मुख्य बिन्दु हैं। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ निजी क्षेत्र द्वारा भी उपलब्ध कराई जाती हैं और सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा भी। शिक्षा का उच्च स्तर जहाँ कौशल व तकनीकी को विकसित करके उत्पादन क्षमता में वृद्धि करता है वहीं पौष्टिक, प्रदूषण रहित, स्वच्छ व स्वस्थ जीवन श्रम की उत्पादकता में वृद्धि करके राष्ट्रीय आय को संवर्धित करता है। हम जानते हैं कि एक स्वस्थ व साक्षर व्यक्ति एक अस्वस्थ व निरक्षर व्यक्ति की तुलना में अधिक कुशलतापूर्वक कार्य कर सकता है, एक अच्छा प्रबंधनै दुर्लभ राष्ट्रीय संसायधनों के अधिक अच्छे उपयोग को संभव बना सकता है और इस प्रकार राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में सहायक हो सकता है। इस प्रकार शिक्षा व स्वास्थ्य पर निवेश मानव पूंजी के अच्छे स्रोत हैं और राष्ट्रीय उत्पादकता बढ़ाने में भी सहायक हैं। निजी क्षेत्र लाभ-आधारित होता है और निजी क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली शैक्षिक व स्वास्थ्य सुविधाएँ अत्यधिक महँगी होती हैं और समाज के सामान्य वर्ग की पहुँच से परे होती हैं। इन सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है। इस संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं
- निजी क्षेत्र की एकाधिकारात्मक प्रवृत्ति को रोकना।
- निजी क्षेत्र द्वारा शोषण को रोकना।।
- सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
- निर्धनता रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
- विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों की रोकथाम करना।
- संतुलित आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
Question - 18 : - भारत में मानव पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ क्या है?
Answer - 18 : -
भारत में मानव पूँजी निर्माण से संबंधित मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं
- भारत में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या मानवीय पूँजी की गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। यह सामान्य सुविधाओं जैसे—सफाई, शिक्षा, रोजगार, अस्पतालों और आवासों आदि की प्रति व्यक्ति उपलब्धता को कम करती है।
- भारत में सर्वोच्च वरीयता कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्रों के विकास को दी जाती है तथा उपलब्ध वित्तीय साधनों का प्रयोग अधिकतम इन्हीं क्षेत्रों में किया जाता है। इसके बाद बचे वित्तीय संसाधनों को अन्य क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। उनमें भी मानव संसाधन क्षेत्र की वरीयता निम्न दर्जे की होती है। अतः इस क्षेत्र का विकास अवरुद्ध है।
- भारत में कुल शिक्षा व्यय का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्राथमिक शिक्षा पर व्यय होता है। उच्चतर/तृतीयक शिक्षण संस्थाओं पर होने वाला व्यय सबसे कम है।
- राज्यों में होने वाले प्रति व्यक्ति शिक्षा व्यय में काफी अंतर है। जहाँ लक्षद्वीप में इसका उच्च स्तर १ 3,440 है, वहीं बिहार में यह मात्र १ 386 है। ये विषमताएँ ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में भी देखने को मिलती हैं।
- जहाँ देश में एक ओर कुछ विशिष्ट प्रकार के श्रमिकों का अभाव अनुभव किया जा रहा है वहीं । दूसरी ओर घोर बेरोजगारी भी विद्यमान हैं। परिणामस्वरूप एक ओर श्रम न मिलने के कारण प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रयोग नहीं होता तथा दूसरी ओर श्रमशक्ति व्यर्थ ही नष्ट हो जाती
- शिक्षा सिद्धांत प्रधान है, व्यवसाय प्रधान नहीं।
- उच्च शिक्षित एवं कौशल युक्त श्रम विदेशों की ओर पलायन (brain drain) कर जाता है।
Question - 19 : - क्या आपके विचार में सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में लिए जाने वाले | शुल्कों की संरचना निर्धारित करनी चाहिए? यदि हाँ, तो क्यों?
Answer - 19 : -
हम जानते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य की देखभाल निजी तथा सामाजिक लाभों को उत्पन्न करती है। इसी कारण इन सेवाओं के बाजार में निजी और सार्वजनिक संस्थाओं को अस्तित्व है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं और उन्हें आसानी से नहीं बदला जा सकता। इसीलिए सरकारी हस्तक्षेप अनिवार्य है तथा निजी क्षेत्रों के लिए शुल्कों की संरचना निर्धारित करना भी आवश्यक है। मान लीजिए, जब भी किसी बच्चे को किसी स्कूल या फिर स्वास्थ्य देखभाल केन्द्र में भर्ती कर दिया जाता है, जहाँ बच्चे को आवश्यक सुविधाएँ नहीं प्रदान की जा रही हों तब ऐसी स्थिति में किसी दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण कर देने पर भी पर्याप्त मात्रा में धन का व्यय हो चुका होगा। यही नहीं, इन सेवाओं के व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को सेवाओं की गुणवत्ताओं और लागतों के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होती। इन परिस्थितियों में शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करा रही संस्थाएँ एकाधिकार प्राप्त कर लेती हैं और शोषण करने लगती हैं। इस समय सरकार की भूमिका यह होनी चाहिए कि वह निजी सेवा प्रदायकों को उचित मानकों के अनुसार सेवाएँ देने और उनकी उचित कीमत लेने को बाध्य करे।