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Chapter 3 उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण एक समीक्षा Solutions

Question - 11 : -
भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिसके कारण यह विश्व का बाह्य प्रापण केन्द्र बन रहा है। ये अनुकूल परिस्थितियाँ क्या हैं?

Answer - 11 : -

भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिसके कारण यह विश्व का बाह्य प्रापण केन्द्र बन रहा है। ये विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं

  1. भारत में इस तरह के कार्य कम लागत में व उचित रूप से निष्पादित हो जाते हैं क्योंकि यहाँ | मजदूरी दर विकसित देशों की तुलना में काफी कम है।
  2. भारत में जनसंख्या आधिक्य के कारण कुशल श्रमिक बहुत हैं जिसके कारण उक्त सेवाओं में कुशलता एवं शुद्धता का मानक भी भारत रख सकता है।

Question - 12 : -
क्या भारत सरकार की नवरत्न नीति सार्वजनिक उपक्रमों के निष्पादन को सुधारने में सहायक रही है? कैसे? ।

Answer - 12 : -

1996 ई० में नवउदारवादी वातावरण में सार्वजनिक उपक्रमों की कुशलता बढ़ाने, उनके प्रबन्धन में व्यवसायीकरण लाने और उनकी स्पर्धा क्षमता में प्रभावी सुधार लाने के लिए सरकार ने नौ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का चयन कर उन्हें नवरत्न घोषित कर दिया। ये कम्पनियाँ हैं—IOCL, BPCL, HPCL,ONGC, SAIL, IPCL, BHEL, NTPC और BSNL. नवरत्न’ नाम से अलंकरण के बाद इन कम्पनियों के निष्पादन में निश्चय ही सुधार आया है। स्वायत्तता मिलने से ये उपक्रम वित्तीय बाजार से स्वयं संसाधन जुटाने एवं विश्व बाजार में अपना विस्तार करने में सफल होते जा रहे हैं।

Question - 13 : -
सेवा क्षेत्रंक के तीव्र विकास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण कौन-से रहे हैं?

Answer - 13 : -

सेवा क्षेत्रक के तीव्र विकास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण इस प्रकार हैं

  1. भारत में मजदूरी की दरें विकसित देशों की तुलना में काफी कम हैं।
  2. जनसंख्या आधिक्य के कारण भारत में कुशल श्रमिकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
  3. निम्न मजदूरी-दरें व कुशल श्रम शक्ति की उपलब्धता के कारण बाह्य प्रापण के जरिए भारत विश्व स्तर पर उल्लेखनीय कार्य कर रहा है। यह भी सेवा क्षेत्र के तीव्र विकास का कारण है।

Question - 14 : -
सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ लगता है। क्यों?

Answer - 14 : -

सुधार कार्यों से कृषि को कोई लाभ नहीं हो पाया है और कृषि की संवृद्धि दर कम होती जा रही है। इस पर विचार के लिए हम निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार कर सकते हैं

  1. कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक व्यय; जैसे—सिंचाई, बिजली, सड़क-निर्माण और शोध-प्रसार आदि पर व्यय में काफी कमी आई है।
  2. उर्वरक सहायिकी में कमी ने उत्पादन लागतों को बढ़ा दिया है।
  3. विश्व व्यापार संघ की स्थापना के कारण कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क में कटौती, न्यूनतम समर्थन मूल्यों की समाप्ति का विचार है जिस कारण देशी किसानों को बाहरी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
  4. आन्तरिक उपभोग की खाद्यान्न फसलों के स्थान पर निर्यात के लिए नकदी फसलों पर बल दिया जा रहा है। इससे देश में खाद्यान्नों की कीमतों पर दबाव बढ़ रहा है।
  5. प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता एवं गुणवत्ता घट रही है।
  6. सरकार का ध्यान कृषि से उद्योग की ओर परिवर्तित हुआ है।

Question - 15 : -
सुधार काल में औद्योगिक क्षेत्रक के निराशाजनक निष्पादन के क्या कारण रहे हैं?

Answer - 15 : -

आर्थिक सुधारों का औद्योगिक क्षेत्र के विकास पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ा है। यह प्रभाव अग्रलिखित है

  1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने पदार्थों की बिक्री के लिए भारतीय बाजारों का शोषण कर रही हैं और घरेलू उत्पादक अपनी कमजोर प्रतियोगी शक्ति के कारण पीछे की ओर खिसकते जा रहे हैं।
  2. औद्योगिक उत्पादनका निष्पादन सन्तोषजनक नहीं रहा। यह अस्सी के दशक के निष्पादन स्तर से भी नीचा था।

Question - 16 : -
सामाजिक न्यायं और जन-कल्याण के परिप्रेक्ष्य में भारत के आर्थिक सुधारों पर चर्चा करें।

Answer - 16 : -

उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों के माध्यम से वैश्वीकरण के भारत सहित अनेक देशों पर कुछ सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि वैश्वीकरण विश्व बाजारों में बेहतर पहुँच तथा तकनीकी उन्नयन द्वारा विकासशील देशों के बडे उद्योगों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण बनने का अवसर प्रदान कर रहा है। दूसरी ओर आलोचकों का विचार है कि वैश्वीकरण ने विकसित देशों को विकासशील देशों के आन्तरिक बाजार पर कब्जा करने का भरपूर अवसर प्रदान किया है। इसके कारण गरीब देशवासियों का कल्याण ही नहीं वरन् उनकी पहचान भी तिरे में पड़ गई है। विभिन्न देशों और जनसमुदायों के बीच की खाई और विस्तृत हो रही है। आर्थिक सुधारों ने केवल उच्च आय वर्ग की आमदनी और उपभोग स्तर का उन्नयन किया है तथा सारी संवृद्धि कुछ गिने-चुने क्षेत्रों; जैसे-दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त, मनोरंजन आदि तक सीमित रही है। कृषि विनिर्माण जैसे आधारभूत क्षेत्रक, जो देश के करोड़ों लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं, इन सुधारों से लाभान्वित नहीं हो पाए हैं।

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