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Question -

स्वतंत्रता के समय भारत के विदेशी व्यापार के परिमाण और दिशा की जानकारी दें।



Answer -

विदेशी व्यापार का परिमाण द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारत के विदेशी व्यापार की मात्रा में कमी हुई। आयातों में कमी होने के मुख्य कारण थे—शत्रु राष्ट्रों के साथ आयातों में कटौती, निर्यातक देशों का युद्ध में संलग्न होना, जहाजी यातायात की तंगी, यातायात भाड़े में वृद्धि और मशीनों के आयातों पर नियंत्रण। महाद्वीपीय देशों को निर्यात बंद हो जाने और जहाजी परिवहन की कमी के कारण ब्रिटेन को होने वाले निर्यातों में भी कमी आई। किंतु बाद के तीन वर्षों में इनमें तेजी से वृद्धि हुई।
युद्ध के कारण विदेशी व्यापार की संरचना में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। आयात मद में कच्चे माल का हिस्सा बड़ा जबकि निर्मित वस्तुओं का हिस्सा घटा। इसके विपरीत निर्यातों में कच्चे माल का हिस्सा घटा जबकि निर्मित घस्तुओं का भाग बढ़ा। वस्तुओं की दृष्टि से इस अवधि में चाय तथा निर्मित जूट का निर्यात निरंतर बढ़ता रहा जबकि कच्चे जूट व तिलहन का निर्यात युद्ध से पूर्व तो बढ़ा किंतु उसके बाद घटता गया। सूती धागा, चीनी, सीमेंट, माचिस अन्य निर्मित माल तथा अन्य उपभोग वस्तुओं के आयात में निरंतर गिरावट आई जबकि खनिज तेल, रसायन, रंग आदि के आयात बढ़ते गए।

विदेशी व्यापार की दिशा- युद्धकाल में ब्रिटेन के साथ भारत के निर्यात और आयात दोनों प्रकार के व्यापार का प्रतिशत कम हो गया लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के देशों के साथ व्यापार में बहुत वृद्धि हुई। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ व्यापार में तेजी से वृद्धि हुई। कनाडा के साथ व्यापार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। यूरोपीय देशों-फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया आदि के साथ भारत का व्यापार घटता चला गया। जापान के युद्ध में कूद पड़ने के कारण भारत का उसके साथ व्यापार बंद हो गया।

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