Question -
Answer -
भारत में जाति प्रथा अति प्राचीन काल से चली आ रही है । मुद्रण संस्कृति का विकास होने के साथ जब इस प्रथा पर प्रहार होने लगा तो उससे जनता में चेतना जागृत हुई। इस पर लिखे गए मुख्य उपन्यास ये थे
1. चंदू मेनन कृत ‘इंदुलेखा’ –
- इंदुलेखा’ उपन्यास एक प्रेम कहानी है, जिसमें अंतर्जातीय विवाह की समस्या को उठाया गया है। इसमें नायिका नंबूदरी ब्राह्मण जमींदार और नायक माधवन नायर वर्ग का है, जो जमींदारों को लगान देते थे। अतः दोनों वर्गों में टकराव उत्पन्न हो जाती है।
- इसका नायक मद्रास विश्वविद्यालय से अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त पढ़ा-लिखा व्यक्ति है। वह आदर्शवादी है, वह उच्च कोटि का संस्कृतज्ञ, नायर रीति के अनुसार लंबी चुटिया रखने वाला तथा पश्चिमी ढंग के कपड़े पहनने वाला है। इसकी नायिका नंबुदरी ब्राह्मण है जो बेवकूफ जमींदार से विवाह करने से इन्कार कर देती है तथा माधवन से विवाह करने की इच्छा प्रकट करती है।
- इस वैवाहिक इच्छा को लेकर दोनों ओर के सदस्यों द्वारा आपत्ति उठाई जाती है परंतु अंत में सभी इसे स्वीकार करते हैं तथा नायक-नायिका द्वारा अपनाए गए मूल्यों की प्रशंसा करते हैं तथा उच्च जाति के अनैतिक कार्यों की निंदा करते हैं।
2. पोथेरी कुंजांबु द्वारा रचित ‘सरस्वती विजयम्’
- यह उपन्यास 1892 में उत्तर केरल के निम्न जाति के लेखक पोथेरी कुंजांबु द्वारा लिखा गया।
- इसमें लेखक ने जाति प्रथा की निंदा की है।
- इसमें अछूत नायक ब्राह्मण जाति के अत्याचारों से बचने के लिए गांव से भागकर शहर में चला जाता है। वहाँ वह ईसाई बन जाता है। वह पढ़-लिख कर जज बनकर अपने क्षेत्र के स्थानीय कचहरी में वापस आता है।
- गांववासी ज़मींदार पर उसी की हत्या का आरोप लगाकर मुकदमा कर देते हैं। इस मामले की सुनवाई के अंत में नायक गांव वालों को अपनी असली पहचान बताता है, ज़मींदार भी अपने किए पर पश्चाताप करता है तथा सुधर जाता है।
- इस प्रकार इसमें जहाँ जाति प्रथा पर प्रहार किया गया है वहीं शिक्षा के महत्त्व को भी दर्शाया गया है तथा इसे उन्नति और विकास के माध्यम के रूप में प्रकट किया गया है।