Question -
Answer -
(क) अठारहवीं सदी में मध्यवर्ग और संपन्न हुए। इससे महिलाओं को उपन्यास पढ़ने और लिखने का अवकाश मिल सका। उपन्यासों में महिला जगत को, उसकी भावनाओं, उसके तजुर्बो, मसलों और उसकी पहचाने से जुड़े मुद्दों को समझा-सराहा जाने लगा। कई सारे उपन्यास घरेलू जिंदगी पर केंद्रित थे। इनमें महिलाओं को अधिकार के साथ बोलने का अवसर मिला। बदलती मान्यताओं व परिस्थितियों के बीच महिलाएँ भी लिखने लगीं। उनकी लेखनी ने गृहस्थिन चरित्रों को लोकप्रिय बनाया और ऐसी औरतों के किरदार गढ़े जो सामाजिक मान्यताओं को मानने से पहले उनसे लड़ती हैं। इन सब बदलावों व कारणों से महिलाओं में पढ़ने की रुचि बढ़ी और पाठिकाओं की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ।
(ख) डैनियल डेफ़ो कृत रॉबिन्सन क्रूसो एक साहसिक यात्री है लेकिन उसके बहुत-से कृत्य ऐसे हैं, जिससे वह ठेठ उपनिवेशवादी दिखाई देता है। जैसे वह दास व्यापार करता है तथा गैर गोरे लोगों को बराबरी का इंसान नहीं मानता बल्कि अपने से हीनतर जीव मानता है। एक ‘देसी’ को मुक्त कराकर उसे वह अपना गुलाम बना लेता है। वह उससे उसका नाम भी नहीं पूछता और अपनी तरफ़ से उसे फ्राइडे कह कर पुकारता है। क्रूसो का यह व्यवहार उस समय के उपनिवेशवादी व्यवहार का एक उदाहरण है जो उसे एक ठेठ उपनिवेशवादी बनाता है।
(ग) समाज के गरीब तबके काफ़ी समय तक पुस्तकों व प्रकाशन के बाजार से बाहर रहे। शुरू-शुरू में उपन्यास काफ़ी महँगे थे तथा गरीब लोगों की पहुँच से दूर थे। 1740 मे किराए पर चलने वाले पुस्तकालयों की स्थापना के बाद लोगों के लिए किताबें सुलभ हो गईं, तकनीकी सुधार से भी छपाई के खर्चे में कमी आई और मार्केटिंग के नए तरीकों से किताबों की बिक्री बढ़ी और गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।
(घ) भारत में आधुनिक उपन्यास लेखन 19वीं सदी में प्रारंभ हुआ। प्रारंभ से ही औपनिवेशिक इतिहासकारों द्वारा लिखे गए इतिहास में हिंदुस्तानियों को आमतौर पर कमजोर, आपस में विभाजित और अंग्रेज़ों पर निर्भर बताया जाता था। ऐसे इतिहास से भारत के बौद्धिकों को असंतोष था।
- वे यह जताना चाहते थे कि भारतीय स्वतंत्र चेतना वाले थे।
- उन्होंने उपन्यास को एक साधन बनाकर भारत के इतिहास व चरित्रों को फिर से गढ़ना शुरू किया, यह कल्पित राष्ट्र, रूमानी साहस, वीरता और त्याग से ओतप्रोत था।
- इस तरह उपन्यास में गुलाम जनता ने अपनी चाहत को साकार करने का जरिया हूँढ़ा।
- उपन्यास में कल्पित राष्ट्र में इतनी ताकत थी कि इससे प्रेरित होकर असली राजनैतिक आंदोलन उठ खड़े हुए।
- ऐसे उपन्यासों में बंकिम चंद्र का आनंदमठ विशेष उल्लेखनीय है।
- बहुत-से उपन्यासकारों ने समाज के विभिन्न तबकों व भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को एक साथ अपनी कहानियों में लाकर एक साझा सामुदायिक समझ बनाने का प्रयास किया, ऐसी समझ जिससे राष्ट्र का निर्माण होता है।
- उपन्यासकारों की रचनाओं से लगता है कि वे राजनैतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे!