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Question -

कल्पना कीजिए कि आप सन् 3035 के इतिहासकार हैं। अभी आपने दो ऐसे उपन्यास देखे हैं जो बीसवीं सदी में लिखे गए थे। उन उपन्यासों से आपको उस जमाने के समाज और रीति-रिवाज के बारे में क्या पता चलता है?



Answer -

सन् 3035 में विज्ञान की उन्नति मानव को एक अत्याधुनिक मशीनी युग में ले आयी है। आज मानव आधा मानवीय जैविक प्राणी व आधा मशीन बन चुका है। पढ़ने व लिखने का कार्य स्वतः मस्तिष्क में प्लांट किये गये चिपों से होता रहता है। पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को एक पहचान नम्बर से जाना जाता है। चन्द्रमा पर बसी हुई बस्तियों पर भी मानव का आना जाना है तथा सूदूर अंतरिक्ष की कई बुद्धिमान सभ्यताओं से भी मानव का सम्पर्क बना हुआ है। फिर भी मानव के सामने नई-नई समस्याएँ अंतरिक्ष की लड़ाका सभ्यताओं के आक्रमण से उत्पन्न होती रहती हैं। समाज में सभी साइवोर्ग (मशीनी मानव) समानता एवं एकता के साथ रहते हैं। सभी औद्योगिक व उत्पादन के कार्य मशीनी रोबोटों द्वारा किये जाते हैं यद्यपि इनमें मानवीय मस्तिष्क की कुछ क्षमताओं को डाला जाता है फिर भी साइवोर्ग (मशीनी मानव) इन्हें नियंत्रण में रखने के लिए इनके रिमोट फ्यूज अपने पास में रखते हैं। सभी कुछ स्वतः होता रहता है। मानव आज भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित है और इसीलिए अपने विकास को अपने इतिहास के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयत्न करता है।

इसी संदर्भ में इतिहास को अपने सुपर कंप्यूटरों की मदद से खोजते हुए मुझे बीसवीं शताब्दी के भारत नामक देश के एक उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के लिखे दो उपन्यास गोदान और रंगभूमिदेखने को मिले। इन दोनों उपन्यासों से उस जमाने के बारे में बड़ी ही रोचक जानकारी मिलती है :

1. इन उपन्यासों से पता चलता है कि उस काल में विश्व देशों में बँटा हुआ था तथा देश राज्यों में। भारतीय समाज में विभिन्न वर्ग थे। कुछ लोगों का जमीनों पर आधिपत्य था तथा कुछ लोग उनकी जमीनों पर कार्य करते थे। समाज में सत्ता के मालिक लोग-जमींदार, महाजन, पुजारी और औपनिवेशिक नौकरशाह थे। ‘गोदान’ में किसान होरी और उसकी पत्नी धनिया को ये लोग अपने दमन चक्र में ऐसा फाँसते हैं कि वे भूमिहीन मज़दूर बन जाते हैं। पर सबके बावजूद होरी और धनिया अपनी गरिमा बनाए रखते हैं।

2. इस तरह दूसरे उपन्यास रंगभूमि का केन्द्रीय चरित्र, सूरदास तथाकथित अछूत जाति का ज्योतिहीन भिखारी है। इस चरित्र को तम्बाकू फैक्ट्री के लिए अपनी जमीन को कब्जा होने से बचाने के लिए संघर्ष करते हुए प्रस्तुत किया गया है। उस जमाने में मानव की औद्योगीकरण की शुरूआत और उसके मानव के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को बताया। गया है। इससे हम यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि इस औद्योगीकरण से किसको फायदा हुआ। क्या मानव विकास सही दिशा में हुआ है?

आज 3035 के एक इतिहासकार होने के नाते बीसवीं सदी के उपन्यासों से प्राप्त जानकारी से जहाँ यह पता चलता है उस समय मानव किस तरह वर्गों, जातियों, अमीरी-गरीबी के संघर्षों में फँसा रहता था। वहीं यह तथ्य भी निकलता है। कि मानव शुरू से ही संघर्षशील रहा है तथा हर काल व समय में वह अपनी समस्याओं का मुकाबला करने में सक्षम रहता है। जैसे औद्योगीकरण की शुरूआत मानव के लिए फायदे व नुकसान दोनों लेकर आई वैसे ही हम 3035 ई० की अपनी मशीनी समस्याओं को भी उसी परिप्रेक्ष्य में समझ सकते हैं कि आखिर मानव ने क्या पाया है और क्या पाना चाहता है?

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