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Chapter 1 धूल Solutions

Question - 11 : -
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?

Answer - 11 : -

ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के द्वारा अनेक सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है। जब अमराइयों के पीछे छिपे सूर्य की किरणें धूल पर पड़ती हैं तो ऐसा लगता है कि मानो आकाश में सोने की परत छा गई हो। सूर्यास्त के बाद लीक पर गाड़ी के निकल जाने के बाद धूले आसमान में ऐसे छा जाती है मानो रुई के बादल छा गए हों। या यों लगता है मानो वह ऐरावत हाथी के जाने के लिए बनाया गया तारों भरा मार्ग हो। चाँदनी रात में मेले पर जाने वाली गाड़ियों के पीछे धूल ऐसे उठती है मानो कवि-कल्पना उड़ान पर हो।

Question - 12 : -
‘हीरा वही घन चोट न टूटे’-का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

Answer - 12 : -

‘हीरा वही जो घन चोट न टूटे’ कथन का संदर्भ पाठ के आधार पर यह है कि सच्चे हीरे अर्थात् किसान, देशभक्त आदि कड़ी से कड़ी परीक्षा को हँसते हुए झेल लेते हैं। वीर सैनिक और दशभक्त विपरीत परिस्थितियों में शत्रुओं से युद्ध करते हुए अपनी जान तक दे देते हैं परंतु पीठ नहीं दिखाते हैं। इसी प्रकार किसान भी सरदी, गरमी बरसात आदि की मार झेलकर फ़सल उगाते हैं। ये विपरीत परिस्थितियों में बड़े से बड़े संकटों के सामने नहीं झुकते हैं और अपना साहस बनाए रखते हैं।

Question - 13 : -
धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।

Answer - 13 : -

मिट्टी इस भौतिक संसार की जननी है। रूप, रस, गंध, स्पर्श के सभी भेद इसी मिट्टी में से जन्म लेते हैं। मिट्टी के दो रूप हैं-उज्ज्वल तथा मलिन। मिट्टी की जो आभा है, उसका नाम है धूल। यह मिट्टी का श्रृंगार है। यह एक प्रकार से मिट्टी की ऊपरी परत है जो गोधूलि के समय आसमान में उड़ती है या चाँदनी रात में गाड़ियों के पीछे-पीछे उठ खड़ी होती । है। यह फूलों की पंखुड़ियों पर या शिशुओं के मुख पर श्रृंगार के समान सुशोभित होती है। ‘गर्द’ मैल को कहते हैं।

Question - 14 : -
‘धूल’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।

Answer - 14 : -

‘धूल’ पाठ के माध्यम से लेखक ने धूल को हेय नहीं श्रद्धेय बताया है। पाठ के माध्यम से धूल की उपयोगिता एवं महत्त्व को भी बताया गया है। धूल बचपन की अनेकानेक यादों से जुड़ी है। शहरवासियों की चमक-दमक के प्रति लगाव एवं धूल को हेय समझने की प्रवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए लेखक ने कहा है कि शहरी सभ्यता आधुनिक बनने के नाम पर धूल से स्वयं ही दूर नहीं भागती बल्कि अपने बच्चों को भी उसके सामीप्य से बचाती है। धूल को श्रद्धाभक्ति स्नेह आदि भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए सर्वोत्तम साधन बताया गया है। धूल हमें लोकसंस्कृति से जोड़ती है। इसके नन्हें-नन्हें कण भी हमें देशभक्ति का पाठ पढ़ाते हैं। धूल की वास्तविकता का ज्ञान कराना ही इस पाठ का मूलभाव है।

Question - 15 : -
कविता को विडंबना मानते हुए लखक ने क्या कहा है?

Answer - 15 : -

लेखक ने किसी पुस्तक विक्रेता द्वारा दिए गए निमंत्रण पत्र में गोधूलि बेला का उल्लेख देखा तो उसे लगा कि यह कविता की विडंबना है। कवियों ने कविता में बार-बार गोधूलि की इतनी महिमा गाई है कि पुस्तक विक्रेता महोदय उस शब्द का प्रयोग कर बैठे। परंतु सच यह है कि शहरों में न तो गाएँ होती हैं, न गोधूलि बेला। अतः यह गोधूलि शब्द केवल कविता के गुणगान को सुनकर प्रयुक्त हुआ है।

Question - 16 : -
फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।

Answer - 16 : -

आशय है कि धूल को भूलकर भी हेय नहीं मानना चाहिए। कारण यह है कि रेणु अर्थात् धूल फूलों की पंखुडियों पर पड़कर उसके सौंदर्य में वृद्धि कर देती है। यह धूल जब बालकृष्ण के खेलने-कूदने से उड़कर उनके चेहरे पर छा जाती है, इस धूल के कारण बालक का सौंदर्य और भी बढ़ जाता है। यह सौंदर्य किसी भी प्रसाधन के प्रयोग से बढ़े सौंदर्य से भी बढ़कर है।

Question - 17 : -
‘धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की’-लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?

Answer - 17 : -

इन पंक्तियों के द्वारा लेखक कहना चाहता है कि इन पंक्तियों का कवि धूल की महिमा का गान तो करता है। किंतु उसके मन में धूल को लेकर गर्व नहीं है। वह धूल को मैला करने वाली चीज़ मानता है। अतः उसके मन में धूल के प्रति अपराध बोध है। दूसरे, वह कवि बालकों में भी भेदभाव करता है। वह धूल सने बालकों और अन्य बालकों में भेद करता है।

Question - 18 : -
मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।

Answer - 18 : -

आशय यह है कि शब्द में रस निहित है। इसके कारण ही शब्द का महत्त्व है। इसी प्रकार शरीर का महत्त्व प्राण होने से और चाँद का महत्त्व उसकी अपनी चाँदनी के कारण है। धूल मिट्टी का ही अंश है। इसे मिट्टी से उसी तरह से अलग नहीं किया जा सकता है जैसे रस को शब्द से, देह को प्राणों से और चाँदनी को चाँद से। इसी प्रकार मिट्टी और धूल का अटूट संबंध है।

Question - 19 : -
हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।

Answer - 19 : -

लेखक नगर में बसने वालों से कहता है-यदि तुम वास्तव में सच्चे देशभक्त हो तो इस धूल को अपने माथे से लगाओ, अर्थात् आम ग्रामीण व्यक्ति का सम्मान करो। परंतु यदि तुम इतना नहीं कर सकते तो कम-से-कम इनके बीच में रहो। इनसे संपर्क न तोड़ो। इनका तिरस्कार न करो। इनका महत्त्व स्वीकार करो।

Question - 20 : -
वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।

Answer - 20 : -

घन की चोट खाने पर भी न टूटकर हीरे ने अपनी दृढ़ता का परिचय दिया है, पर इसके बाद भी इनकी परख करने पर वह पलटकर वार भी कर सकता है तब तुम्हें उसका महत्त्व पता चलेगा। अभी जिसे धूल से मैला समझकर हेय समझ रहे हैं तब उसकी कीमत का ज्ञान हो जाएगा। इससे काँच और हीरे का अंतर भी पता लग जाएगा।

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