Question -
Answer -
‘एक फूल की चाह’ का संक्षिप्त कहानी रूप सुखिया नाम की एक अछूत कन्या थी, जो सदैव हँसती-खेलती रहती थी। एक बार उस क्षेत्र में भयंकर महामारी फैली, जिसकी चपेट में सुखिया भी आ गई। उसे बुखार ने जकड़ लिया। धीरे-धीरे उसका चलना-फिरना, उठना-बैठना बंद हो गया। उसका शरीर कमज़ोर हो गया। यहाँ तक कि आवाज़ भी कमज़ोर पड़ने लगी। उसने अर्ध बेहोशी की हालत में अपने पिता से मंदिर से देवी के प्रसाद का एक फूल लाने के लिए कहा। उसके पिता ने उसकी इच्छा पूरी करने की कोशिश की और स्वच्छ कपड़े पहनकर मंदिर में चला गया। वहाँ पूजा के समय दीप-धूप चढ़ाकर प्रसाद के फूल लेकर आ रहा था कि मंदिर में कुछ सवर्ण भक्तों ने पहचान लिया और चिल्लाकर कहा कि यह अछुत मंदिर में कैसे आ गया।
उन्होंने उस अछूत पिता को मारा-पीटा और न्यायालय ले गए जहाँ उसे सात दिनों का कारावास मिला। कारावास का दंड भोगकर जब वह घर गया तो सुखिया उसे नहीं मिली। उसके मरने की बात जानकर वह भागा-भागा श्मशान गया जहाँ उसे अपनी बच्ची की जगह राख की ढेरी मिली। उसने अपना दुख प्रकट करते हुए कहा, “हाय ! मेरी फूल-सी बच्ची राख की ढेरी बन चुकी है। मैं माता के प्रसाद का एक फूल देकर उसकी अंतिम इच्छा भी न पूरी कर सका।”