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Question -

महादेवी ने कवि सम्मेलनों में कविता पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होने वाली बेचैनी का जिक्र किया है। अपने विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।



Answer -

26 जनवरी, 2019
आज विद्यालय में गणतंत्र दिवस का आयोजन है। सभी छात्र-छात्राओं के अतिरिक्त सैकड़ों अतिथि भी मंडप में पधारे हैं। सामने मेरे माता-पिता तथा अनेक परिचित जन बैठे हैं। मैं मंच के पीछे अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठी हूँ। मुझे कविता बोलनी है। हालाँकि मैंने पहले भी मंच पर कविता बोली है, परंतु जाने क्यों, आज मेरा दिल धक्-धक् कर रहा है। मेरे शरीर में हरकत हो रही है। जैसे-जैसे मेरे बोलने का समय निकट आ रहा है, मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही है। अब मैं न तो मंच का कोई कार्यक्रम सुन पा रही हूँ, न और किसी की बात सुन रही हूँ। मेरा सारा ध्यान अपना नाम सुनने में लगा है। डर भी लग रहा है कि कहीं मैं कविता भूल न जाऊँ। इसलिए मैंने लिखित कविता हाथ में ले ली है। यदि भूलने लगूंगी तो इसका सहारा ले लूंगी। लो, मेरा नाम बुल चुका है। मैं स्वयं को सँभाल रही हूँ। मेरे कदमों में आत्मविश्वास आ गया है। अब मैं नहीं भूलूंगी।

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