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Question -

माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?



Answer -

माटी वाली अत्यंत गरीब बूढ़ी हरिजन महिला थी। टिहरी शहर में घर-घर माटी पहुँचाने के अलावा उसकी आजीविका का कोई दूसरा साधन न था। उसके पास खेती के लिए न कोई ज़मीन थी और न रहने के लिए। वह ठाकुर की जमीन पर झोंपड़ी बनाकर रहती थी जिसके लिए उसे बेगार करना पड़ता था। वह सवेरे माटाखान के लिए निकलती, माटी खोदती भरती और टिहरी के घरों में पहुँचाती। उसे अपनी झोंपड़ी तक लौटते-लौटते शाम हो जाती या रात गहराने लगती। माटी बेचने या घरों से मिली रोटियाँ खाकर सो जाती। ऐसी दिनचर्या में माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में सोचने के लिए वक्त न था।

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