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Question -

कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं, तब क्या होता है?



Answer -

कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं तो उसे लगता है कि जैसे कंचों का जार बड़ा होकर आसमान-सा बड़ा हो गया और वह उसके भीतर चला गया। वह अकेला ही कंचे चारों ओर बिखेरता हुआ मजे से खेल रहा था। हरी लकीर वाले सफ़ेद गोल कंचे उसके दिमाग में पूरी तरह छा गए। मास्टर जी कक्षा में ‘रेलगाड़ी’ का पाठ पढ़ा रहे थे लेकिन उसका ध्यान पढ़ाई में न था। वह तो केवल कंचों के बारे में सोच रहा था इसके लिए उसने मास्टर जी से डाँट भी खाई।

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