Question -
Answer -
पिछले कई वर्षों से यशोधर बाबू का अपनी पत्नी और बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात में मतभेद होने लगा है। इसी वजह से वह घर जल्दी लौटना पसंद नहीं करते। जब तक बच्चे छोटे थे तब तक वह उनकी पढ़ाई-लिखाई में मदद कर सकते थे। अब बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी पा गया है। यद्यपि ‘समहाउ’ यशोधर बाबू को अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन देने वाली यह नौकरी कुछ समझ में आती नहीं।
वह कहते हैं कि डेढ़ हजार रुपया तो हमें अब रिटायरमेंट के पास पहुँच कर मिला है, शुरू में ही डेढ़ हजार रुपया देने वाली इस नौकरी में ज़रूर कुछ पेंच होगा। यशोधर जी का दूसरा बेटा दूसरी बार आई.ए.एस. देने की तैयारी कर रहा है। और यशोधर बाबू के लिए यह समझ सकना असंभव है कि जब यह पिछले साल ‘एलाइड सर्विसेज’ की सूची में, माना काफ़ी नीचे आ गया था, तब इसने ज्वाइन करने से इंकार क्यों कर दिया? उनका तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चला गया है और उनकी एकमात्र बेटी न केवल तमाम प्रस्तावित वर अस्वीकार करती चली जा रही है बल्कि डॉक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए स्वयं भी अमेरिका चले जाने की धमकी दे रही है। यशोधर बाबू जहाँ बच्चों की इस तरक्की से खुश होते हैं वहा ‘समहाउ’ यह भी अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करे। अपने बच्चों द्वारा गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा उन्हें ‘समहाउ’ हुँचती नहीं।