Question -
Answer -
ऐन ने अपनी डायरी में कष्ट देने वाली अनेक बातों में से सबसे प्रमुख कष्टदायक बात अज्ञातवास को ही कहा है। किसी बस्ती में छिपकर रहना बड़ा ही कठिन काम है। 11 अप्रैल, 1944 की जो घटना ऐन ने लिखी है उससे पता चलता है कि वे लोग अनेक कष्टदायी स्थितियों के साथ-साथ सेंधमारों से भी संघर्ष करते थे। . उस दिन रात साढ़े नौ बजे पीटर ने जिस प्रकार ऐन के पिता को बाहर बुलाया उससे ऐन समझ गई कि दाल में कुछ काला है। सेंधमारों ने अपना काम शुरू कर दिया था। इसलिए ऐन के पिता, मिस्टर वान दान और पीटर लपककर नीचे पहुँचे।
ऐन, मागौंट, उनकी माँ और मिसेज वान डी ऊपर डरे-सहमे से इंतजार करते रहे। एक जोर के धमाके की आवाज से इन लोगों के होश उड़ गए। नीचे गोदाम में सन्नाटा था और पुरुष लोग वहीं सेंधमारों के साथ संघर्ष कर रहे थे। डर से काँपने पर भी ये लोग शांत बने रहे। तकरीबन 15 मिनट बाद ऐन के पिता सहमे हुए ऊपर आए और इन लोगों से बत्तियाँ बंद करके ऊपर छत पर चले जाने को कहा। अब ये लोग डरने की प्रतिक्रिया जताने की स्थिति में भी नहीं थे। सीढ़ियों के बीच वाले दरवाजे पर ताला जड़ दिया गया। बुककेस बंद कर दिया गया, नाइट लैंप पर स्वेटर डाल दिया गया।
पीटर अभी सीढ़ियों पर हीं था कि जोर के दो धमाके सुनाई दिए। उसने नीचे जाकर देखा कि गोदाम की तरफ का आधा भाग गायब था। वह लपककर होम गार्ड को चौकन्ना करने भागा। मिस्टर वान ने समझदारी दिखाते हुए शोर मचाया ‘पुलिस! पुलिस!’ यह सुनकर सेंधमार भाग गए और गोदाम के फट्टे फिर से लगा दिए गए। लेकिन वे कुछ ही मिनट में लौट आए और फिर से तोड़ा-फोड़ी शुरू हो गई। उस डरावनी रात में बड़ी मुश्किल से पुरुषों ने संघर्ष करके जान बचाई।