Question -
Answer -
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है।
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है।
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है।
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है?
उत्तर
व्याख्या- कवि अपनी प्रिया से कहता है कि “तुम्हारे साथ न
जाने कौन-सा संबंध है या न जाने कैसा नाता है कि मैं अपने भीतर समाए हुए तुम्हारे स्नेह रूपी जल को जितना बाहर निकालता हूँ वह पुन: उतना ही चारों ओर से सिमटकर चला आता है और मेरे हृदय में भर जाता है। ऐसा लगता है मानो दिल में कोई झरना बह रहा है। वह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है जो मेरे अंतर्मन को तृप्त करता रहता है। इधर मन में प्रेम है और उधर तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है।” कवि का आंतरिक व बाहय जगत-दोनों प्रियतमा के स्नेह से संचालित होते हैं।
कवि चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार अमावस्या में नहाने की बात इसलिए करता है क्योंकि कवि प्रियतमा के प्रकाश से निकलना चाहता है। वह यथार्थ में रहना चाहता है। जीवन में सदैव सब कुछ अच्छा नहीं रहता। वह अपने भरोसे जीना चाहता है। कवि प्रियतमा के स्नेह से स्वयं को मुक्त करके आत्मनिर्भर बनना चाहता है तथा स्वतंत्र व्यक्तित्व का विकास करने की इच्छा रखता है।