Question -
Answer -
शायर बिलकुल भी भाग्यवादी नहीं है। उसे अपने भाग्य पर बिलकुल भरोसा नहीं। वह तो कहता है कि मैं और मेरी किस्मत दोनों मिलकर रोते हैं। वह मुझ पर रोती है और मैं उस पर रो लेता हूँ। दोनों परस्पर विरोधी हैं। इसलिए कह सकते हैं। कि शायर भाग्यवादी नहीं कर्मवादी है। भाग्य की अपेक्षा उसे अपने कर्म पर विश्वास है।