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Question -

लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है, जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं-इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?



Answer -

एक संगीतज्ञ की दृष्टि से कुमार गंधर्व की टिप्पणी सही हो सकती है, परंतु मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। लता ने करुण रस के गाने भी बड़ी उत्कटता के साथ गाए हैं। उनके गीतों में मार्मिकता है तथा करुणा छलकती-सी लगती है। करुण रस के गाने आम मनुष्य से सीधे नहीं जुड़ते। लता के करुण रस के गीतों से मन भावुक हो उठता है। ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत से पं जवाहरलाल नेहरू की आँखें भी सजल हो उठी थीं। फिल्म ‘रुदाली’ का गीत ‘दिल हुँ-हुँ करे’ विरही जनों के हृदय को बींध-सा देता है। इसी तरह ‘ओ बाबुल प्यारे’ . गीत में नारी-मन की पीड़ा को व्यक्त किया है। अत: यह सही नहीं है कि लता ने करुण रस के गीतों के साथ न्याय नहीं किया है।

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