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Question -

मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है और क्यों?



Answer -

एक दिन धनराम को तेरह का पहाड़ा नहीं आया तो आदत के अनुसार मास्टर जी ने संटी मँगवाई और धनराम से सारा दिन पहाड़ा याद करके छुट्टी के समय सुनाने को कहा। जब छुट्टी के समय तक उसे पहाड़ा याद न हो सका तो मास्टर जी ने उसे मारा नहीं वरन् कहा कि “तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ?” यही वह कथन था जिसे पाठ में लेखक ने जबान के चाबुक कहा है, क्योंकि धनराम एक लोहार का बेटा था और मास्टर जी का यह कथन उसे मार से भी अधिक चुभ गया। जैसा कि कहा भी जाता है ‘मार का घाव भर जाता है, पर कड़वी जबान का नहीं भरता’। यही धनराम के साथ हुआ और निराशा के कारण वह अपनी पढ़ाई आगे जारी नहीं रख सका।

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