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Question -

भाव व शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क)
अंसुवन जल सींचि-सीचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गई आणंद-फल होयी

(ख)
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी



Answer -

(क) भाव-सौंदर्य- इस पद में भक्ति की चरम सीमा है। विरह के आँसुओं से मीरा ने कृष्ण-प्रेम की बेल बोयी है। अब यह बेल बड़ी हो गई है और आनंद-रूपी फल मिलने का समय आ गया है।
शिल्प-सौंदर्य-
 1. ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
2. सांगरूपक अलंकार है-प्रेम-बेलि, आणंद-फल, असुवन जल
3. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
4. अनुप्रास अलंकार है-बलि बोयी।
5. संगीतात्मकता है।

(ख) भाव-सौंदर्य- इन काव्य पंक्तियों में कवयित्री ने दूध की मथानी से भक्ति रूपी घी निकाल लिया तथा सांसारिक सुखों को छाछ के समान छोड़ दिया। इस प्रकार उन्होंने भक्ति की महिमा को व्यक्त किया है।
शिल्प-सौंदर्य-
1. अन्योक्ति अलंकार है।
2. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
3. प्रतीकात्मकता है-‘घी’ भक्ति का तथा ‘छाछ” सांसारिकता का प्रतीक है।
4. दधि, घृत आदि तत्सम शब्द हैं।
5. संगीतात्मकता है।
6. गेयता है।

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