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Question -

‘पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।’ वृद्ध मुंशी जी दवारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए-

(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।
(ग) ‘पढ़ना’-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा साक्षरता अथवा शिक्षा? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?)



Answer -

(क) मेरा एक साथी अनपढ़ था। उसने व्यापार करना प्रारंभ किया और शीघ्र ही बहुत धनी और समाज का प्रतिष्ठित आदमी बन गया। मैंने पढ़ाई में ध्यान दिया तथा प्रथम श्रेणी में डिग्रियाँ लेने के बावजूद आज भी बेरोजगार हूँ। नौकरी के लिए मुझे उसकी सिफारिश करवानी पड़ी तो मुझे अपनी पढ़ाई-लिखाई व्यर्थ लगी।
(ख) पढ़ने-लिखने के बाद जब मैं कॉलेज में प्रोफेसर हो गया तो बड़े-बड़े अधिकारी, व्यापारी अपने बच्चों के दाखिले के लिए मेरे पास प्रार्थना करने आए। उन्हें देखकर मुझे अपनी पढ़ाई-लिखाई सार्थक लगी।
(ग) ‘पढ़ना-लिखना’ को शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त किया था, क्योंकि साक्षरता का अर्थ अक्षरज्ञान से लिया जाता – है। शिक्षा विषय के मर्म को समझाती है।

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