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Question -

दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?



Answer -

वंशीधर स्वयं सत्यनिष्ठ था, वह कहीं भी नौकरी करे अपने काम को निष्ठा से करेगा यह उसका प्रण था। अलोपीदीन या पुलिस विभाग कितना भ्रष्ट है, उससे उसे कोई मतलब नहीं था। यह उचित भी है, हम स्वयं को नियंत्रण में रखकर कहीं भी नौकरी करें हमारा मन पवित्र हो, हमें अपने कर्तव्य का ध्यान हो यही सबसे ज्यादा जरूरी है। यदि हम उसकी जगह होते तो वही करते जो उसने किया। कीचड़ में ही कमल रहता है।

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