Question -
Answer -
‘आत्मत्राण’ कविता में कवि प्रभु से दुख दूर करने की प्रार्थना नहीं करता है बल्कि वह स्वयं अपने साहस और आत्मबल से दुखों को सहना चाहता है तथा उनसे पार पाना चाहता है। वह दुखों से मुक्ति नहीं, बल्कि उसे सहने और उबरने की आत्मशक्ति चाहता है। इस कविता में निहित संदेश यह है कि हम अपने दुखों के लिए प्रभु को जिम्मेदार न ठहराएँ। हम दुखों को सहर्ष स्वीकार करें तथा उनसे पीछा छुड़ाने के बजाय उन्हें सहें तथा उनका मुकाबला करें। दुखों से परेशान होकर । हम आस्थावादी बनने की जगह निराशावादी न बने। हम हर प्रकार की स्थिति में प्रभु के प्रति अटूट आस्था एवं विश्वास बनाए रखें।