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Chapter 6 मधुर मधुर मेरे दीपक जल Solutions

Question - 21 : -
कवयित्री ने ‘जलमय सागर’ किसे कहा है? उसका हृदय क्यों जलता है?

Answer - 21 : -

कवयित्री ने जलमय सागर उन प्राणियों को कहा है जिनका मन रूपी सागर ईर्ष्या, तृष्णा, मोह आदि की सांसारिकता से लबालब भरा हुआ है और आध्यात्मिक आस्था का अभाव है। इसके अभाव में मन इधर-उधर भटकता हुआ सांसारिकता में डूबा रहता है। आस्थाहीन प्राणियों का मन ई और तृष्णा की आग में जलता रहता है।

Question - 22 : -
कवयित्री अपने जीवन का अणु-अणु गलाकर क्या सिद्ध करना चाहती है?

Answer - 22 : -

कवयित्री अपने प्रियतम के प्रति पूरी तरह समर्पित है। इसके लिए वह अपना अहम भाव पूरी तरह समाप्त करने के लिए इस अहम का एक-एक अणु गला देना चाहती है। इसके द्वारा वह यह सिद्ध करना चाहती है कि अपने प्रियतम (परमेश्वर) के प्रति उसका समर्पण अनन्य है।

Question - 23 : -
‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।’ कविता के आधार पर कवयित्री की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।

Answer - 23 : -

‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।’ कविता में कवयित्री की आध्यात्मिकता का वर्णन है। वह अपने प्रभु के चरणों में आस्था का दीपक जलाती है और अनवरत जलाए रखना चाहती है। वह इस दीपक से कभी मधुर भाव से जलने के लिए कहती है तो कभी पुलक-पुलककर और कभी विहँस-विहँस कर। वह अपने दीपक की लौ में अपने अहम् को जलाकर अपने आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण, प्रकट करती है। संसार के लोग सांसारिक सुखों में डूबकर ईष्र्या और तृष्णा के कारण जल रहे हैं। कवयित्री चाहती हैं कि वे भी प्रकाश पुंज से चिनगारी लेकर भक्ति की लौ जलाएँ। वह अपने प्रियतम का पथ आलोकित करने के लिए आस्था का दीपक सदा-सदा के लिए जलाकर भक्ति भावना से सारा संसार महकाना चाहती है।

Question - 24 : -
‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ के आधार पर विश्व-शलभ की स्थिति स्पष्ट कीजिए। ऐसे लोगों के प्रति कवयित्री की क्या सोच है?

Answer - 24 : -

‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता से ज्ञात होता है कि विश्व रूपी पतंगा अपनी स्थिति पर पछताता है। वह दुख प्रकट करते हुए कहता है कि वह उस प्रभु भक्ति की आस्था रूपी दीपक की ज्वाला से एकाकार न हो सका। वह इस ज्वाला में अपना अहंकार न जला पाने से अब भी अहंकार, ईर्ष्या, अंधकार, मोह, तृष्णा आदि में डूबा हुआ कष्ट भोग रहा है। आस्था एवं आध्यात्मिकता के अभाव में वह प्रभु भक्ति से दूर रह गया और न भक्ति का आनंद उठा सका और न प्रभु का सान्निध्य प्राप्त कर सका। ऐसे लोगों के बारे में कवयित्री सोचती है कि उन्हें भी प्रकाशपुंज से चिनगारी प्राप्त कर अपनी आस्था का दीप जला लेना चाहिए।

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