Question -
Answer -
‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता से ज्ञात होता है कि विश्व रूपी पतंगा अपनी स्थिति पर पछताता है। वह दुख प्रकट करते हुए कहता है कि वह उस प्रभु भक्ति की आस्था रूपी दीपक की ज्वाला से एकाकार न हो सका। वह इस ज्वाला में अपना अहंकार न जला पाने से अब भी अहंकार, ईर्ष्या, अंधकार, मोह, तृष्णा आदि में डूबा हुआ कष्ट भोग रहा है। आस्था एवं आध्यात्मिकता के अभाव में वह प्रभु भक्ति से दूर रह गया और न भक्ति का आनंद उठा सका और न प्रभु का सान्निध्य प्राप्त कर सका। ऐसे लोगों के बारे में कवयित्री सोचती है कि उन्हें भी प्रकाशपुंज से चिनगारी प्राप्त कर अपनी आस्था का दीप जला लेना चाहिए।