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Chapter 11 बालगोबिन भगत Solutions

Question - 21 : -
पुत्र की मृत्यु के अवसर पर भगत अपनी पतोहू को परंपरा से हटकर कौन-सा कार्य करने को कह रहे थे और क्यों?

Answer - 21 : -

पुत्र की मृत्यु के अवसर पर भगत तल्लीनता से गाए जा रहे थे और उनकी पतोहू विलाप कर रही थी। इसी समय भगत अपनी पतोहू से रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। भगत ऐसा इसलिए कह रहे थे क्योंकि उनका मानना था कि मृत्यु | खुशी का अवसर है। इस समय आत्मा और परमात्मा का मिलन हो जाता है।

Question - 22 : -
भगत की किस दलील के आगे उनकी पतोहू की एक न चली?

Answer - 22 : -

भगत ने अपने बेटे की श्राद्ध की अवधि खत्म होते ही अपनी पतोहू के भाई को बुलवाया और आदेश दिया कि इसकी। दूसरी शादी कर देना। भगत की पतोहू उनके बुढ़ापे का ध्यान रखकर उन्हें छोड़कर नहीं जाना चाहती थी, पर भगत ने कहा कि यदि तू न गई तो मैं घर छोड़कर चला जाऊँगा। इस दलील के आगे उसकी एक न चली।

Question - 23 : -
भगत की मृत्यु उन्हीं के अनुरूप हुई, कैसे? स्पष्ट कीजिए।

Answer - 23 : -

जिस तरह के टेक और नेम-व्रत वाली भगत की दिनचर्या थी, उसी प्रकार उनकी मृत्यु हुई। वे अपने गायन के माध्यम से अपने साहब की निकटता पाना चाहते थे। ऐसा उन्होंने मृत्यु से पूर्ण सायंकाल तक गीत गाकर किया। इसके अलावा वे जीवन में दोनों समय स्नान-ध्यान करते थे। इसे उन्होंने आमरण निभाया। इस तरह हम कह सकते हैं कि भगत की मृत्यु । उन्हीं के अनुरूप हुई।

Question - 24 : -
बालगोबिन भगत ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए क्या किया?

Answer - 24 : -

बालगोबिन भगत ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए दो कार्य किया

उन्होंने अपने पुत्र को अपनी पतोहू से मुखाग्नि दिलाकर महिलाओं को पुरुषों के बराबर लाने का प्रयास किया।
अपने पुत्र की मृत्यु ने पतोहू के भाई को बुलवाकर आदेशात्मक स्वर में कहा, ”इसकी दूसरी शादी कर देना”। इस
प्रकार विधवा विवाह के माध्यम से उन्होंने नारियों की सामाजिक स्थिति को सुधारना चाहा।।

Question - 25 : -
बालगोबिन भगत अपने साधु और गृहस्थ होने का स्वाभिमान कैसे बनाए रखते थे? उनकी गंगा-स्नान यात्रा के आलोक में स्पष्ट कीजिए।

Answer - 25 : -

बालगोबिन भगत प्रति वर्ष अपने घर से तीस कोस दूर गंगा स्नान को जाते थे। इस यात्रा में चार-पाँच दिन लग जाते थे। भगत इतने स्वाभिमानी थे कि पैदल आते-जाते किंतु किसी का सहारा न लेते। वे मानते थे कि साधु को संबल लेने का के या हक। इसी प्रकार वे रास्ते में उपवास कर लेते पर किसी से माँगकर न खाते क्योंकि वे कहते थे कि गृहस्थ किसी से भिक्षा क्यों माँगे। इस प्रकार उन्होंने साधु और गृहस्थ होने के स्वाभिमान को बनाए रखा।

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