Question -
Answer -
दुलारी टुन्नू की काव्य प्रतिभा और मधुर स्वर पर मुग्ध थी। यौवन के अस्ताचल पर खड़ी दुलारी के हृदय में कहीं उसने अपना स्थान बना लिया था। टुन्नू भी उस पर आसक्त था परंतु उसके आसक्त होने का संबंध शारीरिक न होकर आत्मिक था। अतः दोनों के मध्य संबंध का कारण कला और कलाकार मन ही थे । दुलारी के मन में टुन्नू के प्रति करुणा थी। टुन्नू ने आबरवाँ की जगह खद्दर का कुरता, लखनवी दोपलिया की जगह गाँधी टोपी पहनना शुरू कर दिया। और दुलारी को गाँधी आश्रम की बनी धोती देता है। अंत में देश के दीवानों की टोली में सम्मिलित हो प्राण न्योछावर कर देता है। इन सबसे दुलारी भी प्रेरित हो उठती है। दुलारी का देश के दीवानों को विदेशी नए वस्त्र देना, टुन्नू की मृत्यु पर विचलित हो उसकी दी हुईखादी की धोती पहनकर उसके मरने के स्थान पर जाना और टाउन हॉल में उसकी श्रद्धांजलि में गाना-सभी देश-प्रेम की भावना को व्यक्त करते हैं।