Chapter 9 हाइड्रोजन (Hydrogen) Solutions
Question - 21 : - बर्फ के साधारण रूप की संरचना का उल्लेख कीजिए।
Answer - 21 : - बर्फ की संरचना(Structure of Ice)–बर्फ एक अतिव्यवस्थित, त्रिविम, हाइड्रोजन आबन्धित संरचना (highly ordered, threedimensional, hydrogen bonded structure) है जिसे निम्नांकित चित्र-4 में दर्शाया गया है।
X-किरणों द्वारा परीक्षण से पता चला है कि बर्फ क्रिस्टल में ऑक्सीजन परमाणु चार अन्य हाइड्रोजन परमाणुओं से 276 pm दूरी पर चतुष्फलकीय रूप से घिरा रहता है।
हाइड्रोजन आबन्ध बर्फ में वृहद् छिद्र (wide holes) एक प्रकार की खुली संरचना बनाते हैं। ये छिद्र . उपयुक्त आकार के कुछ दूसरे अणुओं को अन्तराकाश में ग्रहण कर सकते हैं।
उपर्युक्त चित्र में दर्शाई बर्फ की संरचना से स्पष्ट है कि प्रत्येक ऑक्सीजन परमाणु चार हाइड्रोजन परमाणुओं से घिरा हुआ है जिनमें दो प्रबल सहसंयोजी आबन्ध (ठोस रेखा द्वारा प्रदर्शित) से तथा दो दुर्बल हाइड्रोजन आबन्धों (बिन्दुदार रेखा से प्रदर्शित) से जुड़े हुए हैं। चूंकि हाइड्रोजन बन्ध (177 pm) सहसंयोजी आबन्धों (95.7 pm) से लम्बे हैं; अतः जल-अणु क्रिस्टल जालक में निविड-संकुलित (closely packed) नहीं होते।
Question - 22 : - जल की अस्थायी एवं स्थायी कठोरता के क्या कारण हैं? वर्णन कीजिए।
Answer - 22 : - अस्थायी कठोरता (Temporary hardness)-अस्थायी कठोरता जल में कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के हाइड्रोजन कार्बोनेट की उपस्थिति के कारण होती है। इसे उबालकर दूर किया जा सकता है। स्थायी कठोरता (Permanent hardness)-स्थायी कठोरता जल में विलेयशील कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के क्लोराइड तथा सल्फेट के रूप में घुले रहने के कारण होती है। यह उबालने से दूर नहीं की जा सकती है।
Question - 23 : - संश्लेषित आयन विनिमयक विधि द्वारा कठोर जल के मृदुकरण के सिद्धान्त एवं विधि की विवेचना कीजिए।
Answer - 23 : -
संश्लेषित आयन विनिर्मयक विधि (Synthetic lon-Exchange Method) संश्लेषित आयन विनिमयक विधि द्वारा जल में विद्यमान कठोरता के लिए उत्तरदायी आयनों को उन अन्य आयनों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है जो जल की कठोरता के लिए उत्तरदायी नहीं होते। इस विधि में दो प्रकार के आयन विनिमयक प्रयोग किए जाते हैं–
- अकार्बनिक आयन विनिमयक तथा
- कार्बनिक आयन विनिमयक।।
1.अकार्बनिक आयन विनिमयक: परम्यूटिट विधि(Inorganic lon-Exchanger : Permutit Method)
इस विधि को ‘जियोलाइट/परम्यूटिट विधि’ भी कहते हैं। यह व्यापारिक मात्रा में कठोर जल को मृदु करने की विधि है। इस विधि में सोडियम जियोलाइट का प्रयोग किया जाता है। यह वास्तव में सोडियम ऐलुमिनियम सिलिकेट नामक पदार्थ है। इसका सूत्र Na2 Al2pSi2O8 है। यह या तो प्राकृतिक रूप से प्राप्त होता है अथवा इसे सोडे की राख (Na2CO3),सिलिका (SiO2) तथा ऐलुमिना (Al2O3)के मिश्रण से कृत्रिम रूप से बनाया जा सकता है। इस मिश्रण के संगलित पदार्थ को जल से धोकर शेष बचे छिद्रित पदार्थ को ही परम्यूटिट कहते हैं। सरलता की दृष्टि से ऐलुमिनियम सिलिकेट अथवा जियोलाइट आयन (Al2Si2O8)के स्थान पर ‘Z’ लिखकर सोडियम जियोलाइट को Na2Z सूत्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। परम्यूटिट विधि से दोनों प्रकार की कठोरता दूर कर सकते हैं। सोडियम जियोलाइट में उपस्थित सोडियम लवणों का यह गुण है कि ये अन्य आयनों द्वारा विस्थापित हो जाते हैं।
परम्युटिट को एक विशेष बेलनाकार पात्र में रखते हैं जिसमें मोटी रेत तथा परम्यूटिट भरा होता है। कठोर जल को इसमें से प्रवाहित करते हैं तो जल में उपस्थित कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के लवण इसके साथ क्रिया करते हैं। सोडियम परमाणुओं के स्थान पर कैल्सियम या मैग्नीशियम परमाणु आ जाते हैं तथा कैल्सियम या गैग्नीशियम परम्यूटिट बन जाता है।
वह जल जो परम्यूटिट परत से ऊपर उठता है, वह Ca2+ व Mg2+ आयनों से मुक्त होता है; अतः वह मृदु जल होता है जिसे पाइप द्वारा बाहर निकाला जा सकता है।
परम्यूटिट का पुनःनिर्माण (Regeneration of permutit)-कुछ समय बाद सम्पूर्ण Na2Z, CaZ व MgZ में परिवर्तित हो जाता है, परन्तु परम्यूटिट लम्बे समय तक कार्य नहीं करता। Na2Z के पुनर्निर्माण के लिए कठोर जल के प्रवेश को रोककर इसके स्थान पर 10% NaCl विलयन मिला दिया जाता है, तब Ca2+ वे Mg2+ आयन Na+ आयनों द्वारा प्रतिस्थापित हो जाते हैं जिससे परम्यूटिट को पुनःनिर्माण हो जाता है।
Ca2+ व Mg2+ आयन जल द्वारा धो दिए जाते हैं तथा पुनर्निर्मित परम्यूटिट का उपयोग पुनः कठोर जल को मृदु करने में किया जा सकता है।।
2. कार्बनिक आयन विनिमयक : संश्लेषित रेजिन विधि (Organiclon-Exchanger : Synthetic Resin Method)
आजकल इस आधुनिक विधि का प्रयोग काफी हो रहा है। परम्यूटिट केवल उन लवण के धनायनों (Ca2+ व Mg2+ ) को हटाता है जो जल को कठोर बनाते हैं। कार्बनिक रसायनज्ञों ने कुछ विशेष पदार्थ विकसित किए हैं, इन्हें आयन विनिमयक रेजिन (ion-exchanger resins) कहते हैं। ये लवण में उपस्थित ऋणायनों को भी हटा सकते हैं जो धनायनों की भाँति ही जल की कठोरता के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस विधि से जल के मृदुकरण में निम्नलिखित दो प्रकार की रेजिन प्रयोग की जाती है-
(i) ऋणायन-विनिमयक रेजिन (Anion-exchangerresins)–वे रेजिन ऋणायन विनिमयक रेजिन कहलाते हैं जिनमें हाइड्रोकार्बन समूह के साथ क्षारीय समूह —OH अथवा —NH2 जुड़े रहते हैं जिन्हें —OH रेजिन के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
(ii) धनायन-विनिमयक रेजिन (Cation-exchanger resins)-ये हाइड्रोजन समूह ही हैं जिनके साथ अम्लीय समूह; जैसे-
—COOH या —SO3H समूह जुड़े रहते हैं तथा इन्हें धनायन विनिमयक रेजिन (H+ रेजिन) कहते हैं।
धनायन रेजिन, जल की कठोरता के उत्तरदायी धनायनों का विनिमय करते हैं, जबकि ऋणायन रेजिन, कठोरता के लिए उत्तरदायी ऋणायनों को हटाते हैं।
इसमें एक टंकी को एक रेजिन R– से लगभग आधा भरकर उसमें ऊपर से जल प्रवाहित करते हैं। रेजिन धनायनों को अवशोषित कर लेता है तथा टंकी से बाहर निकलने वाले जल में कैल्सियम और मैग्नीशियम धनायन नहीं होते; अत: जल मृदु हो जाता है। यह जल अलवणीकृत जल या अनआयनीकृत जल (demineralised water or deionised water) कहलाता है।
इसके पश्चात् इस मृदु जल को दूसरे ऐसे रेजिन R* में प्रवाहित करते हैं जो ऋणायनों को अवशोषित कर लेता है। कार्यविधि (Working procedure)-रेजिन R+ में विशाल कार्बनिक अणु होते हैं तथा उनमें अम्लीय क्रियात्मक समूह (—COOH, कार्बोक्सिलिक समूह) सम्मिलित रहते हैं। कठोर जल में उपस्थित धनायन Ca2+, Mg2+ इन अम्लीय क्रियात्मक समूहों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं तथा अम्ल से जल में H+ आयन आ जाते हैं।
अब पात्र में से जो जल निकलता है, वह धनायनों से मुक्त होता है, परन्तु इसमें ऋणात्मक आयन होते हैं। रेजिन R+ में विशाल कार्बनिक अणुओं के बीच विस्थापित अमोनियम हाइड्रॉक्साइड के दाने होते हैं जिनसे क्रियात्मक हाइड्रॉक्सिल समूह (OH–) संलग्न रहते हैं। कठोर जल में उपस्थित लवणों के ऋण विद्युती आयन, रेजिन R+ के अमोनियम आयनों (NH+4)से संयुक्त हो जाते हैं।
H+ आयन; जो धनायन रेजिन टैंक से आते हैं, इन OH– आयनों के साथ जुड़कर जल-अणु बना लेते हैं। अतः इस प्रकार प्राप्त जल उन सभी आयनों से मुक्त होता है जो कि जल को कठोर बनाते हैं। रेजिन का पुनःनिर्माण (Regeneration of resins)-कुछ समय बाद दोनों टैंकों में उपस्थित रेजिन पूर्णतया समाप्त हो जाते हैं; क्योंकि H+व OH– पूरी तरह प्रतिस्थापित हो जाते हैं। वे लम्बे समय तक जल की कठोरता को दूर नहीं कर सकते। इन्हें पुनः प्राप्त करने के लिए कठोर जल का प्रवेश रोक देते हैं। प्रथम टैंक में तनु HCl की धारा प्रवाहित करते हैं। अम्ल के H+ आयन्स समाप्त हो चुके रेजिन (exhausted resin) में Ca2+ व Mg2+ को प्रतिस्थापित कर H+, रेजिन का निर्माण करते हैं।
इसी प्रकार दूसरे टैंक में समाप्त हो चुके रेजिन को तनु सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन में प्रवेश करा कर पुनर्निर्मित किया जा सकता है।
जब दोनों टैंकों में रेजिन पुनर्निर्मित हो जाता है तो अम्ल व क्षारक का प्रवेश रोक दिया जाता है। इनके स्थान पर पुन: धनायन रेजिन टैंक में कठोर जल को प्रवेश कराया जाता है। इस प्रकार एकान्तर क्रम में क्रियाएँ चलती रहती हैं तथा मृदु जल प्राप्त होता रहता है।
Question - 24 : - जल के उभयधर्मी स्वभाव को दर्शाने वाले रासायनिक समीकरण लिखिए।
Answer - 24 : -
जल की उभयधर्मी प्रकृति (Amphoteric nature of water)-जल अम्ल तथा क्षारक दोनों रूपों में व्यवहार करता है। अतः यह उभयधर्मी है। ब्रान्स्टेड अवधारणा के सन्दर्भ में जल NH, के साथ अम्ल के रूप में तथा H2S के साथ क्षारक के रूप में कार्य करता है-
H2O(l) +NH3(aq) → OH– (aq) +NH+4 (aq) …..(i)
H2O(l) + H2S(aq) →H2O+ (aq)+HS– (aq) ……(ii)
जल अपने से प्रबल अम्लों के साथ क्षारक की भाँति व्यवहार करता है; जैसे—उपर्युक्त अभिक्रिया (ii) में दर्शाया गया है। इसमें जल-अणु H2S से एक प्रोटॉन ग्रहण करके H3O+आयन बनाता है। अभिक्रिया (i) में जल-अणु एक प्रोटॉन का त्याग करता है। NH3 अणु इस प्रोटॉन को ग्रहण करके NH+4 आयन बनाता है।
Question - 25 : - हाइड्रोजन परॉक्साइड के ऑक्सीकारक एवं अपचायक रूप को अभिक्रियाओं द्वारा समझाइए।
Answer - 25 : -
हाइड्रोजन परॉक्साइड के अपघटन के दौरान ऑक्सीकरण-अवस्था परिवर्तन निम्नवत् दर्शाया। जा सकता है-
चूँकि H2O2 में उपस्थित ऑक्सीजन परमाणुओं की ऑक्सीकरण संख्या में वृद्धि तथा कमी दोनों होती हैं; इसलिए यह अपचायक तथा ऑक्सीकारक दोनों की भाँति कार्य कर सकता है। इसे निम्नलिखित अभिक्रियाओं द्वारा समझा जा सकता है-
Question - 26 : - विखनिजित जल से क्या अभिप्राय है? यह कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
Answer - 26 : -
वह जल जो सभी विलेयशील खनिज अशुद्धियों से पूर्णतया मुक्त हो, विखनिजित जल (demineralised water) कहलाता है। दूसरे शब्दों में, धनायनों (Ca2+, Mg2+ आदि) तथा ऋणायनों (Cl–, SO2-4,HCO–3 आदि) से पूर्णतया विमुक्त जल विखनिजित जल कहलाता है। विखनिजित जल को आयन-विनिमयक रेजिन विधि से प्राप्त किया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत आयन-विनिमयक रेजिनों द्वारा जल में उपस्थित सभी धनायनों तथा ऋणायनों को हटा दिया जाता है। इसके लिए सर्वप्रथम कठोर जल को धनायन विनिमय परिवर्तक (रेजिनयुक्त) में प्रवाहित किया जाता है, जहाँ —SO3H तथा —COOH समूहों वाले विशाल कार्बनिक अणु (रेजिन), Na+, Ca2+,Mg2+ तथा अन्य धनायनों को हटाकर H+ आयनों को प्रतिस्थापित कर देते हैं। इस प्रकार प्राप्त जल को पुन: ऋणायन विनिमय परिवर्तक से गुजारा जाता है, जहाँ —NH2 समूह वाले विशाल कार्बनिक अणु (रेजिन) Cl–, SO2-4,HCO–3 आदि ऋणायनों को हटाकर OH– आयनों को प्रतिस्थापित कर देते हैं।
जल के उत्तरोत्तर धनायन-विनिमयक (H+ आयन के रूप में) तथा ऋणायन-विनिमयक (OH–) के रूप में) रेजिन से प्रवाहित करने पर शुद्ध विखनिजित तथा विआयनित जल प्राप्त किया जाता है।
Question - 27 : - क्या विखनिजित या आसुत जल पेय-प्रयोजनों में उपयोगी है? यदि नहीं तो इसे उपयोगी कैसे बनाया जा सकता है?
Answer - 27 : - विखनिजित या आसुत जल पीने के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि यह स्वादहीन होता है तथा इसमें मानव स्वास्थ्य लिए आवश्यक खनिज पदार्थ विद्यमान नहीं होते। इसमें निश्चित मात्रा में आवश्यक खनिज पदार्थ मिलाकर इसे पीने योग्य बनाया जा सकता है।
Question - 28 : - जीवमण्डल एवं जैव-प्रणालियों में जल की उपादेयता को समझाइए।
Answer - 28 : -
जल एक अत्यन्त आवश्यक शारीरिक द्रव (vital body fluid) है और जीवन के सभी रूपों के लिए आवश्यक है। हाइड्रोजन आबन्ध (hydrogen bonding) के कारण इसके क्वथनांक (boiling point), हिमांक (freezing point), संलयन ऊष्मा (heat of fusion) और वाष्पन की ऊष्मा (heat of vaporisation) सामान्य मानों से काफी अधिक होते हैं।
जल के असामान्य भौतिक गुण जैव मण्डल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जल के वाष्पीकरण की उच्च ऊष्मा तथा इसकी ऊष्मा ग्रहण करने की उच्च क्षमता वातावरण पर जल के मृदुल प्रभाव और जीवित प्राणियों के शरीर के ताप नियन्त्रण के लिए उत्तरदायी है।
जल का क्वाथनांक उच्च होने के कारण यह सामान्य ताप पर द्रव अवस्था में रहता है, अन्यथा पृथ्वी पर जल द्रव अवस्था में शेष ही नहीं रहता। जल एक बहुत अच्छा (excellent) विलायक है। कुछ सहसंयोजक कार्बनिक यौगिक जैसे ऐल्कोहॉल और कार्बोहाइड्रेट, जल (H2O) अणुओं के साथ हाइड्रोजन आबन्ध बनाते हैं जिस कारण ये जल में घुल जाते हैं। अपनी उत्तम विलायक क्षमता के कारण जल पौधों और प्राणियों में होने वाले उपापचयी क्रियाओं के लिए आवश्यक आयनों व अणुओं के परिवहन में सहायता करता है। अतः जल जैव मण्डल और जैविक तन्त्र के लिए अति आवश्यक है।
Question - 29 : - जल का कौन-सा गुण इसे विलायक के रूप में उपयोगी बनाता है? यह किस प्रकार के यौगिक-
(i) घोल सकता है और
(ii) जल-अपघटन कर सकता है?
Answer - 29 : - जल का डाइइलेक्ट्रिक स्थिरांक (78.39) तथा द्विध्रुव आघूर्ण (1.84D) उच्च होते हैं। इन गुणों के कारण, जल एक उत्तम विलायक (excellent solvent) है जो अकार्बनिक और अनेक सहसंयोजक यौगिकों (जैसे-ऐल्कोहॉल, अम्ल, कार्बोहाइड्रेट आदि) को घोल सकता है। यही कारण है कि जल एक सार्वत्रिक विलायक (universal solvent) कहा जाता है। यह आयनिक यौगिकों को आयन-द्विध्रुव अन्तराकर्षण (ion-dipole interaction) और सहसंयोजक यौगिकों को हाइड्रोजन आबन्ध के कारण घोल देता है। जल बहुत से ऑक्साइड, हाइड्राइड, कार्बाइड, नाइट्राइड, फॉस्फाइड आदि को जल अपघटित (hydrolyse) कर सकता है।
Question - 30 : - H2O एवं D2O के गुणों को जानते हुए क्या आप मानते हैं कि D2O का उपयोग पेय-प्रयोजनों के रूप में किया जा सकता है?
Answer - 30 : -
D2O पेय-प्रयोजनों हेतु उपयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह जहरीला होता है। यह पौधों की वृद्धि (growth) को मन्द कर देता है। यद्यपि यह एक कीटाणुनाशक व जीवाणुनाशक है, फिर भी यह पेय-प्रयोजनों के रूप में उपयोग नहीं होता क्योंकि सामान्य जल में भारी जल की अधिक मात्रा उसे विषैली बनाती है।