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Chapter 3 दोहे Solutions

Question - 1 : -
छाया भी कब छाया हूँढ़ने लगती है?

Answer - 1 : -

जेठ मास की दोपहर की प्रचंड गरमी में तो छाया भी छाया की इच्छा करने लगती है अर्थात् छाया रूपी नायिका भी जेठ मास की प्रचंड गरमी में घर से बाहर नहीं निकलना चाहती, क्योंकि भीषण गरमी प्राणियों के साथ-साथ प्रकृति को भी दग्ध कर देती है, तो लगता है कि छाया भी कहीं छिपकर बैठ गई है।

Question - 2 : -
बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’–स्पष्ट कीजिए।

Answer - 2 : -

बिहारी की नायिका विरह की अग्नि में जल रही है। वह अपने मन की बात नायक को बताने में असमर्थ है। वह कागज पर अपने प्रियतम को संदेश लिखना चाहती है, परंतु आँसू, पसीने व कंपन के कारण निष्फल हो जाती है। किसी अन्य के माध्यम से नायक को संदेश भेजने में उसे लज्जा आती है। नायिका को विश्वास है कि प्रेम दोनों ओर से है। जैसा प्रेम उसके मन में है, वैसा ही प्रेम प्रेमी के हृदय में भी है, प्रेम हृदय की भाषा स्वयं जान लेता है, अतः इसमें कुछ कहने सुनने की ज़रूरत नहीं रह जाती।

Question - 3 : -
सच्चे मन में राम बसते हैं-दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।

Answer - 3 : -

सच्चे मन में ही ईश्वर का वास होता है अर्थात् सच्चे मन में ही राम बसते हैं, क्योंकि सच ही तो ईश्वर है। कच्चा मन अर्थात् विषयी मन तो भोग-विलास, विषय-वासनाओं में उलझा रहता है। जिनका मन साफ नहीं होता, वे भौतिक सुखों की चकाचौंध में ही फंसे रहते हैं। माला जपना आडंबर है, दिखावा है। इनसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। सच्चे। मन, सच्ची श्रद्धा -तथा सच्ची लगन से ही ‘राम’ की प्राप्ति होती है।

Question - 4 : -
गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?

Answer - 4 : -

गोपियाँ रसिक शिरोमणि श्रीकृष्ण से बातें करने के लालच में उनकी निकटता अधिक समय तक पाने की इच्छा रखने के कारण श्रीकृष्ण की बाँसुरी छिपा लेती हैं। क्योंकि श्रीकृष्ण सदा मुरली बजाने में मस्त रहते हैं जिसके कारण गोपियाँ उनसे बातें नहीं कर पाती हैं। वे उनकी मुरली छिपाने का उपाय सोचती हैं क्योंकि जब मुरली उनके पास नहीं रहेगी तो वे उनसे मुरली के बहाने बातें करेंगी। इस उद्देश्य से वे जान-बूझकर कृष्ण की बाँसुरी छिपा लेती हैं।

Question - 5 : -
बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

Answer - 5 : -

कवि बिहारी जी ने सभी की उपस्थिति में भी बिना शब्दों के कैसे बात की जा सकती है, इस रहस्य के उद्घाटन का बड़ा ही सजीव वर्णन किया है। लोगों की उपस्थिति में तथा  भरे हुए भवन में भी प्रेमी-प्रेमिका आँखों-ही-आँखों में एक-दूसरे की भाषा समझ लेते हैं। आँखों की सांकेतिक भाषा से दोनों एक-दूसरे के हृदय की बात जान लेते हैं। और किसी को इसकी खबर भी नहीं लगती।

Question - 6 : -
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।

Answer - 6 : -

इस पंक्ति का भाव है कि भगवान श्रीकृष्ण का नीला शरीर पीतांबर ओढ़े दिव्य स्वरूप ऐसे प्रतीत हो रहा है, मानो नीलमणि पर्वत पर सुबह का सूर्य शोभायमान हो अर्थात् सुबह का सूर्य जगमगा उठा हो।

Question - 7 : -
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।

Answer - 7 : -

भाव-इस पंक्ति का भाव यह है कि ग्रीष्म ऋतु के प्रचंड ताप से संपूर्ण वन तपोवन जैसा पवित्र बन गया है। अब यहाँ हिंसा का नामोनिशान नहीं है। आपसी वैर-भाव को भूलकर सबमें मैत्रीभाव विकसित हो गया है। शेर-हिरण, साँप-मोर जैसे शत्रु भी समान रूप से एक-दूसरे पर आक्रमण किए बिना गर्मी सहन कर रहे हैं जैसे तपस्वियों का सान्निध्य पाकर वैर-भाव रखने वाले हिंसक पशु भी एक साथ निवास करते हैं।

Question - 8 : -
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु ।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु ।।

Answer - 8 : -

इन पंक्तियों का भाव है कि माला जपने से, मस्तक पर तिलक लगाने से अर्थात् बाहरी आडंबरों द्वारा भक्ति करने से एक भी कार्य पूर्ण नहीं होता तथा इससे सच्ची भक्ति नहीं मिलती। सच्ची भक्ति तो मन की सच्चाई, श्रद्धा तथा सच्ची लगन से मिलती है, क्योंकि सच्चे मन में ही राम का निवास होता है अर्थात् कवि ने बाहरी आडंबरों का खंडन करके प्रभु की सच्चे मन से भक्ति करने पर बल दिया है।

Question - 9 : -
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर ।
देखन में छोटे लगै, घाव करें गंभीर ।।

Answer - 9 : -

अध्यापक की मदद से बिहारी विषयक इस दोहे को समझने का प्रयास करें। इस दोहे से बिहारी की भाषा संबंधी किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर

कवि बिहारी द्वारा रचित इस दोहे को पढ़ने से पता चला चलता है कि बिहारी गागर में सागर भरने की कला में सिद्धहस्त
हैं। वे कम-से-कम शब्दों में अधिकाधिक बात कहने की कला में निपुण हैं। ‘सतसई’ के दोहों के माध्यम से उन्होंने कम-से-कम शब्दों में भावों को अभिव्यक्त करने के अलावा अर्थगांभीर्य के भी दर्शन होते हैं। ये दोहे मन को गहराई से छू जाते हैं।
इसके अलावा उनके दोहों में ब्रजभाषा की सरसता, कोमलता और मधुरता व्याप्त है। इन दोहों में श्रृंगार रस (संयोग-वियोग दोनों) तथा भक्ति रस घनीभूत है। अनुप्रास, रूपक, उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग होने से भाषिक सौंदर्य बढ़ गया है।

Question - 10 : -
बिहारी कवि के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए।

Answer - 10 : -

नीचे दी गई जानकारियों के आधार पर छात्र परियोजना तैयार करें-
जीवन-परिचय
जन्म – सन् 1595
जन्म स्थान – ग्वालियर के पास बसुआ गोविंदपुर नामक स्थान।
पिता – केशवराय
शिक्षा – आठ वर्ष की उम्र में ग्वालियर से ओरछा आना और संस्कृत काव्य का अध्ययन।
केशवदास से काव्य शास्त्र की दीक्षा।
आगरा आकर फारसी का अध्ययन करना।
रहीम द्वारा उनकी रचनाएँ सुनना और पुरस्कार देना।
राजाश्रय – शाहजहाँ के अलावा राजस्थान, जोधपुर तथा बूंदी जैसी रियासतों से शासकीय वृत्ति।
जयपुर के महाराज जय सिंह के दरबारी कवि और प्रतिदिन एक अशरफ़ी की प्राप्ति।
देहांत – सन् 1663 ई०
रचनाएँ – बिहारी सतसई इसमें 700 दोहे हैं।
काव्यगत विशेषताएँ – श्रृंगारिक दोहों के लिए प्रसिद्ध।

भावपक्ष – आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए नायक-नायिकाओं की प्रेम-कीड़ाओं और सुंदरता का चमत्कारपूर्ण वर्णन।
नीति एवं भक्ति संबंधी दोहों की रचना।
कलापक्ष – कम शब्दों में अधिक कहने में महारत हासिल। इसके लिए प्रसिद्ध दोहा-
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर ।
देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर ।।
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात ।
भरे भौन में करत हैं नैननु हीं सब बात ।।
कई अलंकारों का एक साथ प्रयोग – सोहत ओढ़े पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात ।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्योो प्रभात ।।

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