वह जल जो परम्यूटिट परत से ऊपर उठता है, वह Ca2+ व Mg2+ आयनों से मुक्त होता है; अतः वह मृदु जल होता है जिसे पाइप द्वारा बाहर निकाला जा सकता है।
परम्यूटिट का पुनःनिर्माण (Regeneration of permutit)-कुछ समय बाद सम्पूर्ण Na2Z, CaZ व MgZ में परिवर्तित हो जाता है, परन्तु परम्यूटिट लम्बे समय तक कार्य नहीं करता। Na2Z के पुनर्निर्माण के लिए कठोर जल के प्रवेश को रोककर इसके स्थान पर 10% NaCl विलयन मिला दिया जाता है, तब Ca2+ वे Mg2+ आयन Na+ आयनों द्वारा प्रतिस्थापित हो जाते हैं जिससे परम्यूटिट को पुनःनिर्माण हो जाता है।
Ca2+ व Mg2+ आयन जल द्वारा धो दिए जाते हैं तथा पुनर्निर्मित परम्यूटिट का उपयोग पुनः कठोर जल को मृदु करने में किया जा सकता है।।
2. कार्बनिक आयन विनिमयक : संश्लेषित रेजिन विधि (Organiclon-Exchanger : Synthetic Resin Method)
आजकल इस आधुनिक विधि का प्रयोग काफी हो रहा है। परम्यूटिट केवल उन लवण के धनायनों (Ca2+ व Mg2+ ) को हटाता है जो जल को कठोर बनाते हैं। कार्बनिक रसायनज्ञों ने कुछ विशेष पदार्थ विकसित किए हैं, इन्हें आयन विनिमयक रेजिन (ion-exchanger resins) कहते हैं। ये लवण में उपस्थित ऋणायनों को भी हटा सकते हैं जो धनायनों की भाँति ही जल की कठोरता के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस विधि से जल के मृदुकरण में निम्नलिखित दो प्रकार की रेजिन प्रयोग की जाती है-
(i) ऋणायन-विनिमयक रेजिन (Anion-exchangerresins)–वे रेजिन ऋणायन विनिमयक रेजिन कहलाते हैं जिनमें हाइड्रोकार्बन समूह के साथ क्षारीय समूह —OH अथवा —NH2 जुड़े रहते हैं जिन्हें —OH रेजिन के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
(ii) धनायन-विनिमयक रेजिन (Cation-exchanger resins)-ये हाइड्रोजन समूह ही हैं जिनके साथ अम्लीय समूह; जैसे-
—COOH या —SO3H समूह जुड़े रहते हैं तथा इन्हें धनायन विनिमयक रेजिन (H+ रेजिन) कहते हैं।
धनायन रेजिन, जल की कठोरता के उत्तरदायी धनायनों का विनिमय करते हैं, जबकि ऋणायन रेजिन, कठोरता के लिए उत्तरदायी ऋणायनों को हटाते हैं।
इसमें एक टंकी को एक रेजिन R– से लगभग आधा भरकर उसमें ऊपर से जल प्रवाहित करते हैं। रेजिन धनायनों को अवशोषित कर लेता है तथा टंकी से बाहर निकलने वाले जल में कैल्सियम और मैग्नीशियम धनायन नहीं होते; अत: जल मृदु हो जाता है। यह जल अलवणीकृत जल या अनआयनीकृत जल (demineralised water or deionised water) कहलाता है।
इसके पश्चात् इस मृदु जल को दूसरे ऐसे रेजिन R* में प्रवाहित करते हैं जो ऋणायनों को अवशोषित कर लेता है। कार्यविधि (Working procedure)-रेजिन R+ में विशाल कार्बनिक अणु होते हैं तथा उनमें अम्लीय क्रियात्मक समूह (—COOH, कार्बोक्सिलिक समूह) सम्मिलित रहते हैं। कठोर जल में उपस्थित धनायन Ca2+, Mg2+ इन अम्लीय क्रियात्मक समूहों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं तथा अम्ल से जल में H+ आयन आ जाते हैं।
अब पात्र में से जो जल निकलता है, वह धनायनों से मुक्त होता है, परन्तु इसमें ऋणात्मक आयन होते हैं। रेजिन R+ में विशाल कार्बनिक अणुओं के बीच विस्थापित अमोनियम हाइड्रॉक्साइड के दाने होते हैं जिनसे क्रियात्मक हाइड्रॉक्सिल समूह (OH–) संलग्न रहते हैं। कठोर जल में उपस्थित लवणों के ऋण विद्युती आयन, रेजिन R+ के अमोनियम आयनों (NH+4)से संयुक्त हो जाते हैं।
H+ आयन; जो धनायन रेजिन टैंक से आते हैं, इन OH– आयनों के साथ जुड़कर जल-अणु बना लेते हैं। अतः इस प्रकार प्राप्त जल उन सभी आयनों से मुक्त होता है जो कि जल को कठोर बनाते हैं। रेजिन का पुनःनिर्माण (Regeneration of resins)-कुछ समय बाद दोनों टैंकों में उपस्थित रेजिन पूर्णतया समाप्त हो जाते हैं; क्योंकि H+व OH– पूरी तरह प्रतिस्थापित हो जाते हैं। वे लम्बे समय तक जल की कठोरता को दूर नहीं कर सकते। इन्हें पुनः प्राप्त करने के लिए कठोर जल का प्रवेश रोक देते हैं। प्रथम टैंक में तनु HCl की धारा प्रवाहित करते हैं। अम्ल के H+ आयन्स समाप्त हो चुके रेजिन (exhausted resin) में Ca2+ व Mg2+ को प्रतिस्थापित कर H+, रेजिन का निर्माण करते हैं।
इसी प्रकार दूसरे टैंक में समाप्त हो चुके रेजिन को तनु सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन में प्रवेश करा कर पुनर्निर्मित किया जा सकता है।
जब दोनों टैंकों में रेजिन पुनर्निर्मित हो जाता है तो अम्ल व क्षारक का प्रवेश रोक दिया जाता है। इनके स्थान पर पुन: धनायन रेजिन टैंक में कठोर जल को प्रवेश कराया जाता है। इस प्रकार एकान्तर क्रम में क्रियाएँ चलती रहती हैं तथा मृदु जल प्राप्त होता रहता है।