Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि Solutions
Question - 11 : - “कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
Answer - 11 : -
लेखिका ने यह कथन उन पहाड़ी श्रमिक महिलाओं के विषय में कहा है, जो पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में अपने बच्चों को सँभालते हुए कठोर श्रम करती हैं। ऐसा ही दृश्य वह पलामु और गुमला के जंगलों में भी देख चुकी थी, जहाँ बच्चे को पीठ पर बाँधे पत्तों (तेंदु के) की तलाश में आदिवासी औरतें वन-वन डोलती फिरती हैं। उसे लगता है कि ये श्रम-सुंदरियाँ ‘वैस्ट एट रिपेईंग’ हैं; अर्थात् ये कितना कम लेकर समाज को कितना अधिक लौटा देती हैं। वास्तव में यह एक सत्य है कि हमारे ग्रामीण समाज में महिलाएँ बहुत कम लेकर समाज को बहुत अधिक लौटाती हैं। वे घर-बार भी सँभालती हैं, बच्चों की देखभाल भी करती हैं और श्रम करके धनोपार्जन भी करती हैं। यह बात हमारे देश की आम जनता पर भी लागू होती है। जो श्रमिक कठोर परिश्रम करके सड़कों, पुलों, रेलवे लाइनों का निर्माण करते हैं या खेतों में कड़ी मेहनत करके अन्न उपजाते हैं; उन्हें बदले में बहुत कम मजदूरी या लाभ मिलता है। लेकिन उनका श्रम देश की प्रगति में बड़ा सहायक होता है। हमारे देश की आम जनता बहुत कम पाकर भी देश की प्रगति में अहम भूमिका निभाती है।
Question - 12 : - आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।[
Answer - 12 : -
आज की पीढ़ी पहाड़ी स्थलों को अपना विहार-स्थल बना रही है। वहाँ भोग के नए-नए साधन पैदा किए जा रहे हैं। इसलिए जहाँ एक ओर गंदगी बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर तापमान में वृद्धि हो रही है। परिणामस्वरूप पर्वत अपनी स्वाभाविक सुंदरता खो रहे हैं। | इसे रोकने में हमें सचेत होना चाहिए। हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे पहाड़ों का प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट हो, गंदगी फैले और तापमान में वृद्धि हो।
Question - 13 : - प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
Answer - 13 : -
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का उल्लेख किया गया है, परंतु प्रदूषण के अन्य दुष्परिणाम जो सामने आए हैं, वे हैं
- प्रदूषण के कारण कम बरफ़ गिरने से प्राकृतिक सौंदर्य में कमी आ गई है।
- बरफ़ गिरने या न गिरने की अनिश्चितता के कारण पर्यटकों की संख्या में कमी आने से पर्यटन उद्योग प्रभावित हो रहा है।
- कम बरफ़बारी से नदियों का जलस्तर घट रहा है।
- प्रदूषण से वैश्विक तापमान बढ़ा है, जिससे ध्रुवों की बरफ़ जल्दी पिघलने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
- प्रदूषण से जलवायु चक्र प्रभावित हुआ है, जिससे असमान वर्षा तथा प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हुई है।
- स्वाँस संबंधी बीमारियों के अलावा अन्य नाना प्रकार की बीमारियों में अचानक वृद्धि हुई है।
Question - 14 : - ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?
Answer - 14 : -
कटाओ सिक्किम की एक खूबसूरत किंतु अनजान-सी जगह है, जहाँ प्रकृति अपने पूरे वैभव के साथ दृष्टिगोचर होती है। यहाँ पर लेखिका को बर्फ का आनंद लेने के लिए घुटनों तक के लंबे बूटों की आवश्यकता अनुभव हुई तो उसने देखा कि वहाँ पर झांगु की तरह ऐसी चीजें किराए पर मुहैया करवाने वाली दुकानों की कतारें तो क्या, एक दुकान भी न थी।
लेखिका को लगा कि कटाओ में किसी दुकान का न होना भी वहाँ के लिए वरदान है। क्योंकि अगर वहाँ दुकानों की कतार लग गई तो कटाओ का नैसर्गिक सौंदर्य तो दबेगा ही, स्थानीय आबादी भी बढ़ेगी और पर्यटकों की भीड़ भी। अंततः वहाँ भी प्रदूषण अपने पाँव पसारेगा। ऐसे में कटाओं में दुकानों का न होना एक वरदान ही है।
Question - 15 : - प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
Answer - 15 : -
प्रकृति का हर काम बेजोड़ एवं सबसे अलग तरीके से होता है। इसी तरह प्रकृति में जलसंचय का तरीका भी अद्भुत है। प्रकृति शीत ऋतु में पर्वत शिखरों पर गिरी बरफ़ को एकत्रकर जलसंचय कर लेती है। ये पर्वत शिखर वास्तव में अनूठे। जल स्तंभ हैं। इनकी बरफ़ सूर्य के ताप से गरमियों में पिघलकर पानी के रूप में नदियों में बहती है और लोगों की प्यास बुझाने के अलावा कृषि की सिंचाई करने के काम आता है। अन्य स्थानों पर वर्षा का एकत्र जल तालाब, झील, पोखर आदि का वाष्पीकरण करके प्रकृति उसे बादल के रूप में एकत्र कर लेती है।
Question - 16 : - देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझन हैं? उनके प्रति हमारा क्या नरदायित्व होना चाहिए?
Answer - 16 : -
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी प्रकृति के प्रकोप को सहन करते हैं। जाड़ों में हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में जब तापमान शून्य से 20-25 सैल्सियस नीचे चला जाता है तो भी वे सीमा पर डटे रहते हैं। देशवासी चैन की नींद सो सकें, इसलिए वे रात-रात भर जागते हैं। तपते रेगिस्तान में धूल-भरे तूफानों के बीच वे भूखे-प्यासे अपने कर्तव्यों की पूर्ति करते हैं। आवश्यकता पड़े तो वे सीने पर शत्रु की गोली भी खाते हैं।
देश के रक्षक फौजियों के प्रति हमारा दायित्व है कि हम उनके प्रति स्नेह तथा सम्मान का भाव रखते हुए उन्हें हर प्रकार की सहायता दें। उनके परिवारों को किसी प्रकार का कष्ट या अभाव न हो, उनके बच्चों की शिक्षा भली-भाँति हो सके, इस बात का ध्यान रखना हमारा ही उत्तरदायित्व है।