Question -
Answer -
भारत के आयात एवं निर्यात दोनों में ही कालिक परिवर्तन हुए हैं। भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति
समय के साथ भारत के विदेशी व्यापार में बहुत बड़े परिवर्तन हुए हैं, जैसा कि निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है-
- भारत का कुल विदेशी व्यापार 1950-51 में 1,214 करोड़ रुपये था, जो कि वर्ष 2016-17 में बढ़कर 44,29,762 करोड़ रुपये हो गया।
- निर्यात की अपेक्षा आयात तेजी से बढ़ा है। 1950-51 में आयात 608 करोड़ रुपये से बढ़कर 2009-10 में 1,36.736 करोड़ रुपये हो गया। इसकी तुलना में इसी अवधि में निर्यात 606 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,45,534 करोड़ रुपये हो गया।
- व्यापार घाटा जो कि 2000-01 में – 27,302 करोड़ रुपये था वह बढ़कर 2009-10 में – 5,18.202 करोड़ रुपये हो गया।
- भारत के व्यापार सन्तुलन के विपक्ष में होने के कारण-
- विश्व स्तर पर मूल्यों में वृद्धि।
- विश्व बाजार में भारतीय रुपये का अवमूल्यन।
- उत्पादन में धीमी प्रगति तथा घरेलू उपभोग में वृद्धि।
- विश्व व्यापार में कड़ी प्रतिस्पर्धा।
- घाटे में इस वृद्धि के लिए अपरिष्कृत पेट्रोलियम को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, क्योंकि यह भारत की आयात सूची में एक प्रमुख व महँगा घटक है।
वर्ष 2012-13 से 2016-17 के दौरान भारत के विदेश व्यापार में निर्यात एवं आयात के बीच अन्तर का फैलाव
स्त्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17.
तालिका:भारत का विदेश व्यापार
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17.
ऊपर दी गई सारणी से स्पष्ट होता है कि आयात का मूल्य, निर्यात के मूल्य से सदा ही अधिक रहा है और आयात तथा निर्यात के बीच अन्तर बढ़ता ही जाता है। इससे व्यापार घाटे में निरन्तर वृद्धि होती है।