Question -
Answer -
(i) हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था(Hydrogen Economy)
हम सभी जानते हैं कि कोयला तथा पेट्रोलियम सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाले ईंधन हैं, परन्तु ये संसाधन अत्यन्त तीव्र दर से समाप्त होते जा रहे हैं तथा आगामी भविष्य में उद्योग तथा परिवहन इससे बहुत अधिक प्रभावित हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त ये संसाधन मानव-स्वास्थ्य के प्रति भी अत्यन्त हानिकारक हैं; क्योंकि ये वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं। इनके दहन के फलस्वरूप उत्पन्न अनेक विषाक्त गैसे-कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड वायुमण्डल में मिल जाती हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए वैकल्पिक ईंधनों की खोज सदैव होती रही है। इस सन्दर्भ में भावी विकल्प ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था है। हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का मूल सिद्धान्त ऊर्जा का द्रव हाइड्रोजन अथवा गैसीय हाइड्रोजन के रूप में अभिगमन तथा भण्डारण है। हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का मुख्य ध्येय तथा लाभ–ऊर्जा का संचरण विद्युत-ऊर्जा के रूप में न होकर हाइड्रोजन के रूप में होना है। हमारे देश में पहली बार अक्टूबर, 2005 में आरम्भ परियोजना में डाइहाइड्रोजन स्वचालित वाहनों के ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया गया। प्रारम्भ में चौपहिया वाहन के लिए 5 प्रतिशत डाइहाइड्रोजन मिश्रित CNG को प्रयोग किया गया। बाद में डाइहाइड्रोजन की प्रतिशतता धीरे-धीरे अनुकूलतम स्तर तक बढ़ाई जाएगी।
आजकल डाइहाइड्रोजन का उपयोग ईंधन सेलों में विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। ऐसी आशा की जाती है कि आर्थिक रूप से व्यवहार्य तथा डाइहाइड्रोजन के सुरक्षित स्रोत का पता आने वाले वर्षों में लग सकेगा तथा उसका उपयोग ऊर्जा के रूप में हो सकेगा।
(ii) हाइड्रोजनीकरण(Hydrogenation)
असंतृप्त कार्बनिक यौगिक हाइड्रोजन से सीधे संयोग करके संतृप्त यौगिक बनाते हैं, यह अभिक्रिया
हाइड्रोजनीकरण कहलाती है। यह अभिक्रिया उत्प्रेरक की उपस्थिति में होती है तथा इन अभिक्रियाओं से अनेक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक हाइड्रोजनीकृत उत्पाद प्राप्त होते हैं।
वनस्पति तेलों का हाइड्रोजनीकरण (Hydrogenation ofVegetable Oils)-473K पर निकिल उत्प्रेरक की उपस्थिति में वनस्पति तेलों; जैसे-मूंगफली के तेल, बिनौले के तेल में हाइड्रोजन गैस प्रवाहित करने पर तेल ठोस वसाओं, जिन्हें वनस्पति घी कहा जाता है, में परिवर्तित हो जाते हैं। वास्तव में तेल बन्ध की उपस्थिति के कारण असंतृप्त होते हैं। हाइड्रोजनीकरण पर ये बन्ध बन्ध में परिवर्तित हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप असंतृप्त तेल संतृप्त वसा में परिवर्तित हो जाते हैं।
ओलिफिन का हाइड्रोफॉर्मिलीकरण (Hydroformylation of Olefins)-ओलिफिन का हाइड्रोफॉर्मिलीकरण कराने पर ऐल्डिहाइड प्राप्त होता है, जो ऐल्कोहॉल में अपचयित हो जाता है।
उपर्युक्त के अतिरिक्त कोयले का हाइड्रोजनीकरण करने पर द्रव हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण प्राप्त होता है। जिसे आसुत करने पर कृत्रिम पेट्रोल प्राप्त होता है।
(iii) सिनौस (Syngas) हाइड्रोकार्बन अथवा कोक की उच्च ताप पर एवं उत्प्रेरक की उपस्थिति में भाप से अभिक्रिया कराने पर डाइहाइड्रोजन प्राप्त होती है।
उदाहरणस्वरूप-
CO एवं H2 के मिश्रण को वाटर गैस कहते हैं। CO एवं H2 का यह मिश्रण मेथेनॉल तथा अन्य कई हाइड्रोकार्बनों के संश्लेषण में काम आता है। अतः इसे ‘संश्लेषण गैस’ या ‘सिन्गैस’ (syngas) भी कहते हैं। आजकल सिन्गैस वाहितमले (sewage waste), अखबार, लकड़ी का बुरादा, लकड़ी की छीलन आदि से प्राप्त की जाती है। कोल से सिन्गैस का उत्पादन करने की प्रक्रिया को ‘कोलगैसीकरण (coal-gasification) कहते हैं-
(iv) भाप-अंगार गैस सृति अभिक्रिया (Water gas Shift reaction) सिन्गैस में उपस्थित कार्बन मोनोक्साइड की आयरन क्रोमेट उत्प्रेरक की उपस्थिति में भाप से क्रिया कराने पर डाइहाइड्रोजन का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है-
यह ‘भाप-अंगार गैस सृति अभिक्रिया’ (water gas shift reaction) कहलाती है। वर्तमान में लगभग 77 प्रतिशत डाइहाइड्रोजन का औद्योगिक उत्पादन शैल रसायनों (petro-chemicals), 18 प्रतिशत कोल, 4 प्रतिशत जलीय विलयनों के विद्युत-अपघटन तथा 1 प्रतिशत उत्पादन अन्य स्रोतों से होता है।
(v) ईंधन सेल (Fuel Cell) , वह युक्ति जो ईंधन की रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है, ईंधन सेल कहलाती है। आजकल डाइहाइड्रोजन का प्रयोग ईंधन सेलों में विद्युत-उत्पादन के लिए किया जाता है।