Question -
Answer -
वायुमण्डलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण कहा जाता है। वायुमण्डलीय परिसंचरण महासागरीय जल की गति को गतिमान रखता है, जो पृथ्वी की जलवायु को भी प्रभावित करता है। पृथ्वी पर वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण का क्रमिक प्रारूप चित्र 10.3 में प्रस्तुत है। पृथ्वी की सतह से ऊपर की दिशा में होने वाले परिसंचरण और इसके विपरीत दिशा में होने वाले परिसंचरण को कोष्ठ (Cell) कहते हैं। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में ऐसे कोष्ठ को हेडले का कोष्ठ तथा उपोष्ठ उच्च दाब कटिबन्धीय क्षेत्र में फेरल कोष्ठ एवं ध्रुवीय अक्षांशों पर ध्रुवीय कोष्ठ कहा जाता है। ये
तीन कोष्ठ वायुमण्डलीय परिसंचरण का प्रारूप निर्धारित करते हैं जिसमें तापीय ऊर्जा का निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांओं में स्थानान्तर सामान्य परिसंचरण प्रारूप को बनाए रखता है। 30° उत्तरी व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब के दो सम्भव कारण निम्नलिखित हैं
1. उच्च तापमान व न्यून वायुदाब से अन्तर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र पर वायु संवहन धाराओं । के रूप में ऊपर उठती है। हम जानते हैं कि विषुवत् रेखा पर घूर्णन गति तेज होती है जिसके कारण वायुराशियाँ बाहर की ओर जाती हैं। यह हवा ऊपर उठकर क्रमशः ठण्डी होती है। ऊपरी परतों में यह हवा ध्रुवों की ओर बहने से और अधिक हो जाती है और इसका घनत्व बढ़
जाता है।
2. दूसरा कारण यह है कि पृथ्वी के घूर्णन के कारण ध्रुवों की ओर जाने वाली हवा कोरिऑलिस बल के कारण पूर्व की ओर विक्षेपित होकर कर्क और मकर रेखा व 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उतर जाती है और उच्च वायुदाब कटिबन्ध का निर्माण करती है। इसको उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध कहते हैं।’