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Chapter 16 जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conversation) Solutions

Question - 11 : - प्रकृति को बनाए रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन करें।

Answer - 11 : -

प्रकृति अजैव एवं जैव तत्त्वों का समूह है। इसकी कार्यशीलता इन दोनों तत्त्वों की पारस्परिक क्रिया द्वारा ही संचालिव्र होती है। जैव तत्त्वों के अन्तर्गत विद्यमान जैव-विविधता प्रकृति के सन्तुलित संचालन का ही परिणाम है। अत: प्रकृति को बनाए रखने के लिए जैव-विविधता एवं जैव-विविधता की सुरक्षा के लिए प्रकृति के साथ मानव के मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का अपना विशिष्ट महत्त्व है। दूसरे शब्दों में, प्रकृति एवं जैव-विविधता में घनिष्ट सम्बन्ध है तथा ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

आज जो जैव-विविधता हम देखते हैं वह 2.5 से 3.5 अरब वर्षों के विकास का परिणाम है। पारितन्त्र में मौजूद विभिन्न प्रजातियाँ कोई-न-कोई क्रिया करती रहती हैं। पारितन्त्र में कोई भी प्रजाति न तो बिना कारण के विकसित हो सकती है और न ही उसका अस्तित्व बना रह सकता है अर्थात् प्रत्येक जीव अपनी आवश्यकता पूरी करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के विकास में भी सहायक होता है। जीव वे प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संरक्षण करती हैं। जैव-विविधता कार्बनिक पदार्थ विघटित तथा उत्पन्न करती हैं और पारितन्त्र में जल व पोषक तत्त्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती है। यह जलवायु को नियन्त्रित करने में सहायक है और पारितन्त्र को सन्तुलित रखती हैं। इस प्रकार जैव-विविधता प्रकृति कों बनाए रखने में सहायक है।

Question - 12 : - जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करें। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।

Answer - 12 : -

पृथ्वी पर जीवों के उद्भव एवं विकास में करोड़ों वर्ष लगे हैं। विभिन्न पारिस्थितिक तन्त्र भाँति-भाँति के जीव-जन्तुओं एवं पादपों के प्राकृतिक आवास बने। कालान्तर में मानवजनित एवं प्राकृतिक कारणों से अनेक जीवों की जातियाँ धीरे-धीरे लुप्त होने लगीं। वर्तमान में पौधों एवं प्राणी जातियों के विलोपन की दर बढ़ गई। इससे पृथ्वी की जैव-विविधता को खतरा उत्पन्न हो गया। भू-पृष्ठ पर जैव-विविधता में ह्रास के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं

1. आवासों का निवास-वन एवं प्राकृतिक घास स्थल अनेक जीवों के प्राकृतिक आवास होते हैं, किन्तु जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि एवं मानव आवास के लिए भूमि आपूर्ति को पूरा करने के लिए जैव-विविधता क्षेत्र का विनाश किया गया है।

2. वन्य जीवों का अवैध शिकार-मानव ने उत्पत्ति काल से ही वन्य जीवों का शिकार प्रारम्भ कर दिया था, किन्तु तब यह सीमित मात्रा में था। वर्तमान में मनोरंजन के अतिरिक्त अवैध धन कमाने (तस्करी) के लिए जैव-विविधता का बड़ी बेहरमी से शोषण किया जा रहा है।

3. मानव-वन्यप्राणी द्वन्द्व-मानव जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण भोजन और आवास की माँग बढ़ी है। इसीलिए जीवों एवं पादप आवास स्थलों पर अतिक्रमण में वृद्धि हुई है। विभिन्न आर्थिक
लाभों के लिए भी मानव-वन्य प्राणी द्वन्द्व चरम पर है।

4. प्राकृतिक आपदाएँ-ऐसी अनेक प्राकृतिक आपदाएँ हैं जिनके कारण जैव-विविधता का ह्रास बड़ी मात्रा में होता है। अकाल, महामारी, दावानल, बाढ़, सूखा, तूफान; भू-स्खलन, भूकम्प आदि के कारण वनस्पति एवं प्राणियों का व्यापक विनाश हुआ है। उपर्युक्त के अतिरिक्त आणविक हथियारों का प्रयोग, औद्योगिक दुर्घटनाएँ समुद्रों में तेल रिसाव, हानिकारक अपशिष्ट उत्सर्जन आदि भी ऐसे कारक हैं जिनके कारण जैव-विविधता ह्रास में वृद्धि हुई है।

रोकने के उपाय-जैव-विविधता ह्रास या विनाश को रोकने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं

  1. जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण,
  2. वनारोपण में वृद्धि
  3. मृदा अपरदन को रोकना,
  4. कीटनाशकों के प्रयोग पर नियन्त्रण,
  5. विभिन्न प्रकार के प्रदूषण पर नियन्त्रण,
  6. वन्य प्राणियों के शिकार पर कठोर प्रतिबन्ध,
  7. संकटापन्न प्रजातियों का संरक्षण,
  8. वन्य-जीव एवं वनस्पति के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर रोक।

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