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Chapter 18 श्रम विभाजन और जाति प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Solutions

Question - 11 : -
लेखक ने जाति-प्रथा की किन-किन बुराइयों का वर्णन किया हैं?

Answer - 11 : -

लेखक ने जाति-प्रथा की निम्नलिखित बुराइयों का वर्णन किया है –

  1. यह श्रमिक-विभाजन भी करती है।
  2. यह श्रमिकों में ऊँच-नीच का स्तर तय करती है।
  3. यह जन्म के आधार पर पेशा तय करती है।
  4. यह मनुष्य को सदैव एक व्यवसाय में बाँध देती है भले ही वह पेशा अनुपयुक्त व अपर्याप्त हो।
  5. यह संकट के समय पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती, चाहे व्यक्ति भूखा मर जाए।
  6. जाति-प्रथा के कारण थोपे गए व्यवसाय में व्यक्ति रुचि नहीं लेता।

Question - 12 : -
लेखक की दृष्टि में लोकतंत्र क्या है ?

Answer - 12 : -

लेखक की दृष्टि में लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है। वस्तुत: यह सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति और समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। इसमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो।

Question - 13 : -
आर्थिक विकास के लिए जाति-प्रथा कैसे बाधक है?

Answer - 13 : -

भारत में जाति-प्रथा के कारण व्यक्ति को जन्म के आधार पर मिला पेशा ही अपनाना पड़ता है। उसे विकास के समान अवसर नहीं मिलते। जबरदस्ती थोपे गए पेशे में उनकी अरुचि हो जाती है और वे काम को टालने या कामचोरी करने लगते हैं। वे एकाग्रता से कार्य नहीं करते। इस प्रवृत्ति से आर्थिक हानि होती है और उद्योगों का विकास नहीं होता।

Question - 14 : -
डॉ० अबेडकर ‘समता’ को कैसी वस्तु मानते हैं तथा क्यों?

Answer - 14 : -

डॉ० आंबेडकर ‘समता’ को कल्पना की वस्तु मानते हैं। उनका मानना है कि हर व्यक्ति समान नहीं होता। वह जन्म से ही । सामाजिक स्तर के हिसाब से तथा अपने प्रयत्नों के कारण भिन्न और असमान होता है। पूर्ण समता एक काल्पनिक स्थिति है, परंतु हर व्यक्ति को अपनी क्षमता को विकसित करने के लिए समान अवसर मिलने चाहिए।

Question - 15 : -
जाति और श्रम-विभाजन में बुनियादी अतर क्या है? ‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ के आधार पर उत्तर दीजिए।

Answer - 15 : -

जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अंतर यह है कि –

  1. जाति-विभाजन, श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन करती है।
  2. सभ्य समाज में श्रम-विभाजन आवश्यक है परंतु श्रमिकों के वर्गों में विभाजन आवश्यक नहीं है।
  3. जाति-विभाजन में श्रम-विभाजन या पेशा चुनने की छूट नहीं होती जबकि श्रम-विभाजन में ऐसी छूट हो सकती है।
  4. जाति-प्रथा विपरीत परिस्थितियों में भी रोजगार बदलने का अवसर नहीं देती, जबकि श्रम-विभाजन में व्यक्ति ऐसा कर सकता है।

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