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Question -

विजयदान देथा की कहानी “दुविधा  (जिस पर ‘पहेली’ फिल्म बनी हैं) के अंश को पढकर आप देखेंगे /देखेंगी कि भात जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि की तरह हाँ गड़रिए की जीवन–दृष्टि हैं। इससे जाले भीतर क्या भाव जगते हैं?



Answer -

गडरिया बर्गर कहँ‘ हाँ उम के दिल र्का बात समझ गया,
पर अँगूंती कबूल नहीं र्का । काली दाहीं के बीच पीले दाँतों‘
की हँसी” हँसते हुए बोला ” मैं कोइ राजा नहीं हुँ जो न्याय
की कीमत वसूल करू। मैंने तो अटका काम निकाल
दिया । आँर यह अँगूठी मेरे किस काम ! न यह
अँगुलियों  में आती  हैं, न तड़े यें। मरी भेड़े‘ भी मेरी तरह
गाँवार हँ‘। घास तो खाती हैं, पर सोना सूँघती तक नहाँ।
                   बेकार र्का वस्तुएँ तुम अमरों को ही शोभा देती हैं।” –विजयदान देथा

उत्तर

इससे हमारे मन में यह भाव जागते हैं कि हमें संतुष्ट रहना चाहिए। हमें किसी भी चीज़ के लालच तथा मोह में नहीं फंसना चाहिए। हमारे अंदर जितना अधिक संतुष्टी का भाव रहेगा, हम उतने ही शांत और सुखी बने रहेंगे। जीवन में कोई लालसा हमें सता नहीं पाएगी। हम परम सुख को भोगेंगे और शांति कायम कर पाएँगे।

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