Question -
Answer -
आकाश में असंख्य, अनगिनत तारे होते हैं परंतु वह संसार भर में प्रकाश नहीं फैलाते। प्रकाश तो सूर्य की किरणों में ही होता है। कितने ही स्नेहहीन दीपक हैं जो प्रकाश नहीं देते अर्थात कितने ही मनुष्यों के हृदय में दया, प्रेम, करुणा, ममता आदि भाव नहीं होते। कवयित्री को संसार के प्राणियों में प्रभु-भक्ति का अभाव प्रतीत होता है। इसी भाव को व्यक्त करने के लिए वह प्रतीकों का सहारा लेती हैं। उनके लिए नभ’ है-संसार, ‘तारे हैं लोग, ‘स्नेह’ है-भक्ति का भाव । अतः वह संसार को भक्ति शून्य बताने के लिए आकाश के तारों को स्नेहहीन कह रही हैं।